कालियानाग का घमंड
भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल में उनकी लीलाओं से जुड़ी काफ़ी सारी रोचक कहानियां और किस्से सुनने को मिलते हैं। ऐसा ही एक किस्सा कालिया नाग का भी है, जिसके घमंड को श्री कृष्ण ने चूर-चूर कर दिया था। कहा जाता है, कि कालिया नाग कद्रू के पुत्र और पन्नग जाति के नागराज थे। यमुना नदी में रहने से पहले, वह रमण द्वीप में निवास करता था। लेकिन पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता होने के कारण, उसे उस स्थान का त्याग करना पड़ा।
ऐसी मान्यता है, कि यमुना जी में कालिया नाग का एक कुंड था, जिसका जल विष की ऊष्मा से सदैव ही खौलता रहता था। उसका प्रभाव ऐसा था, कि नदी के ऊपर उड़ने वाले पक्षी भी झुलस जाते थे। सिर्फ इतना ही नहीं, अगर कभी वायु भी उसका स्पर्श पाकर किसी पेड़, पौधे या तट को स्पर्श कर लेती, तो वह भी झुलस जाते थे।
यह एक परम सत्य है, कि जब-जब दुष्टों का पाप धरती पर बढ़ता है, तब-तब भगवान का अवतरण होता है। इसी प्रकार, जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा, कि कालिया नाग का विष त्राहि-त्राहि मचा रहा है और इससे यमुना जी का पवित्र जल भी विष बन गया है, तो उन्होंने उसके वध की लीला रचाई।
एक दिन मित्रगणों के साथ खेलते हुए, वह एक ऊँचें कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गए और यमुना नदी में गेंद लेने के बहाने जल में कूद गए। अब तो भगवान अत्यंत मधुर लीला करते हुए, यमुना नदी का जल हवा में उछालने लगे। यह देखकर कालिया नाग को बहुत गुस्सा आया। वह स्वयं ही, उनके सामने आ गया और उनको निहारने लगा।
उसे लगा, इतना सलोना और कोमल शरीर का यह बालक, बिना किसी भय के ऐसे मंद-मंद मुस्कुरा कर इस विषैले जल में निर्भय होकर खेल रहा है। कुछ समय तक यह देखने के बाद, वह क्रोध में आकर श्री कृष्ण को अपने बंधन में जकड़ लेता है। अब इस लीला की सुंदरता देखिये, कि जो स्वयं इस लीला के कर्ता हैं, वही एक आम मानस के समान उस नागपाश में बंधकर चेतनहीन हो गए।
प्रभु को ऐसे देखकर उनके बाल सखा, गाय, बैल, बछिया, गोकुलवासी और गोपियाँ अत्यंत व्याकुल हो गईं। माता यशोदा और नंद बाबा भी इस दृश्य से सुध-बुध खो बैठे और स्वयं अपने कन्हैया के पास जाने लगे। जब भगवान ने देखा, कि उनकी यह लीला सबके दुखों का कारण बन रही है, तो उन्होंने तुरंत ही अपना आकार बड़ा किया और नागपाश से मुक्त हो गए। फिर क्या था, कालिया नाग अब तो और ज़ोर से फुफकारने लगा और विष की फुहार फेंकने लगा। यह देखकर श्री कृष्ण ने उसके शीश को अपने चरणों में दबाया और ऊनपर सवार हो गए, फिर वहीं सुंदर नृत्य करने लगे।
कालिया नाग के कुल 100 शीश थे। अब जब भी वह एक भी शीश झुकाता, प्रभु उसको कुचल देते। ऐसा करते-करते उसका पूरा अंग चूर-चूर हो गया और उसकी शक्तियां भी क्षीण हो गईं। उस वक़्त कालिया नाग ने मन में नारायण की छवि का ध्यान किया और और नागपत्नियां भी, प्रभु की शरण में जा पहुंचीं और उनकी स्तुति करने लगीं।
उन्होंने कहा, कि “आप किसी को दंड भी देते हो, तो वह उसके परम कल्याण के लिए ही है। यह इनकी साधन का फल है, जो आपकी चरण धूलि का यह अधिकारी हुआ। यह मूढ़ है, आप इसकी गलतियों को क्षमा करें और हमें हमारे पति को वापस देने का सौभग्य प्रदान करें।” इसके पश्चात कालिया नाग ने भी प्रभु की उत्तम स्तुति की, जिसके बाद उन्होंने उस पर अपनी करुणा दृष्टि दिखाई।
श्री कृष्ण ने कालिया नाग से कहा, कि “हे सर्प! अब तुझे यहाँ नहीं रहना चाहिये। तू अभी के अभी अपने वंश के साथ, यहां से प्रस्थान कर जा। अब तुम जाओ, तुम्हारे शरीर पर मेरे पद चिन्ह हैं, तमको अब गरुण नहीं खाएगा।” इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया और प्रभु की कृपा से, यमुना नदी का विषैला जल अमृत समान हो गया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालिया नाग मर्दन को प्रभु की सबसे सुंदर लीलाओं की श्रेणी प्राप्त है। जहां वह एक बालक के समान क्रीड़ा भी करते हैं और पाप का संहार करने के लिए तारणहार भी बन जाते हैं।
हमें भी इस लीला से यह सीखने को मिलता है, कि कोई भी विष या व्यक्ति केवल तब तक हानिकारक है, जब तक वो प्रभु के चरणों में नहीं जाता। एक बार मनुष्य को प्रभु की चरणधूलि प्राप्त हो जाए, तो वह अमृत के समान कल्याणकारी और विश्व के लिए लाभप्रद हो सकता है।
अगर आपको श्री कृष्ण की लीला से जुड़ी यह कहानी पसंद आई, तो ऐसी ही कहनियों और धर्म पर चर्चा को सुनने के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर के साथ।