माँ शैलपुत्री की पूजा | Maa Shailputri Ki Puja
शैलपुत्री - ब्रह्मचारिणी - चंद्रघंटा - कूष्मांडा - स्कंदमाता - कात्यायनी - कालरात्रि - महागौरी - सिद्धिदात्री, यह माँ दुर्गा के वे नौ रूप हैं जिनकी पूजा नवरात्र के नौ दिनों में की जाती है।
नवरात्र शक्ति की साधना का पर्व है। यह ऐसा समय है जब हर साधक संसार की सभी तामसिक ऊर्जाओं को छोड़कर सिर्फ माँ दुर्गा की साधना में खुद को मग्न रखना चाहता है।
नवरात्रि के पर्व में शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा की मन से की गई उपासना से साधकों के हर कार्य सिद्ध होते हैं और आपकी पूजा से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा आपकी हर मनोकामना को पूरा करती हैं।
यह साधना शुरू होती नवरात्र के प्रथम दिन से जब माँ दुर्गा के साथ ही माता के प्रथम रूप माँ शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है।
हम श्रीमंदिर के माध्यम से आपको बताना चाहते हैं कि पहले दिन माँ दुर्गा की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है,
तो चलिए शुरूआत करते हैं नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा के शुभ मुहूर्त से -
शुभ मुहूर्त
03 अक्टूबर, पहला दिन - प्रतिपदा तिथि, घटस्थापना, मां शैलपुत्री पूजा
घटस्थापना मुहूर्त - 03 अक्टूबर, गुरुवार, 05:51 AM से 06:56 AM तक अभिजित घटस्थापना मुहूर्त- 03 अक्टूबर 11:23 AM से 12:10 PM तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 03 अक्टूबर, गुरुवार, 11:24 PM प्रतिपदा तिथि समापन- 04 अक्टूबर, शुक्रवार, 02:58 AM
कन्या लग्न प्रारम्भ - 03 अक्टूबर, 05:51 AM कन्या लग्न समाप्त - 03 अक्टूबर, 06:56 AM
इस वर्ष नवरात्रि प्रतिपदा तिथि 03 अक्टूबर, गुरुवार को रात 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और 04 अक्टूबर शुक्रवार को सुबह 2 बजकर 58 मिनट समाप्त होगी।
पूजा सामग्री - माँ शैलपुत्री की पूजा के लिए आपको जो सामग्री चाहिए, वे कुछ इस प्रकार हैं-
- माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर
- सफ़ेद रंग के पुष्प
- सफ़ेद रंग की मिठाई
(यदि आपके पास माँ शैलपुत्री व माँ के अन्य रूपों की तस्वीर उपलब्ध न हों तो आप माँ दुर्गा की ऐसी तस्वीर ले सकते हैं, जिसमें माता के नौ स्वरूप दिखाई दें। अगर वह भी संभव न हों तो माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर भी उपयुक्त है। क्योंकि माँ दुर्गा में ही उनका हर स्वरूप निहित है)
नवरात्रि प्रतिपदा तिथि को सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और माँ भगवती और माता शैलपुत्री की पूजा के लिए लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को ठीक से साफ करके गंगा जल से शुद्ध करें। मंदिर को अपनी रूचि अनुसार सजाएं। अब इस स्थान में चौकी स्थापित करें।
इस बात का ध्यान रखें कि चौकी को पूर्व दिशा में स्थापित करें। यह इस तरह से हो कि माँ दुर्गा और माँ शैलपुत्री का मुख पश्चिम की ओर हो, और पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की तरफ हो।
अब मुहूर्त के अनुसार पूजा विधि शुरू करें।
स्वस्ति वाचन -
सबसे पहले चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें। सीधे हाथ में जल ले कर स्वस्ति मंत्र का उच्चारण करें।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
इसके बाद इस जल को चौकी के दाएं और बाएं तरफ छिड़कें।
चौकी स्थापना -
- अब चौकी रखने वाले स्थान अर्थात जमीन पर सिंदूर, हल्दी और अक्षत में से किसी एक के उपयोग से स्वास्तिक बनाएं।
- इसपर चौकी की स्थापना करें और चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इस चौकी को गंगाजल से पवित्र करें
- इस पर बताये गए दिशा के निर्देशों के अनुसार माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद माता के सामने चौकी पर दायीं और बाईं तरफ अक्षत से अनुसार दो अष्टदल बनाएं।
- ध्यान रखें कि माता के दाएं तरफ अष्टदल पर कलश की स्थापना की जाती है, और बाएं तरफ के अष्टदल पर दीपक रखा जाता है।
- यह करने के बाद सबसे पहले दीप और धूप जलाएं।
गणेश आह्वान: मंत्र, पंचोपचार-
- सर्वप्रथम गणेशजी का आह्वान करने के लिए एक पान के पत्ते पर गणेशजी को माता के बाएं तरफ स्थापित करें। इनपर गंगाजल का छिड़काव करें।
- ‘ॐ गं गणपतेय नमः’ मंत्र का 5 बार जाप करते हुए श्रीगणेश को कुमकुम-हल्दी, अक्षत, फूल-फल आदि चढ़ाएं।
कलश स्थापना -
- दाईं ओर के अष्टदल पर कलश स्थापना करें।
- मिट्टी या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें, इसमें गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाएं और कलश के उभार पर हल्दी-कुमकुम लगाकर इसके मुख पर लाल कलावा बांधे।
- अब दो लौंग, दो सुपारी, एक हल्दी की गांठ, अक्षत, दो इलायची और एक सिक्के को सीधे हाथ में लेकर कलश में डालें।
- यदि इनमें से कुछ सामग्री आपको नहीं मिल पाई हो, तो आप शुद्ध जल में सिर्फ सिक्का और चावल डालकर भी कलश स्थापित कर सकते हैं।
- इसके बाद अष्टदल रूपी आम के पत्तों को हल्दी कुमकुम लगाकर इस कलश के मुख पर रखें।
- अब नारियल पर लाल चुनरी या लाल वस्त्र को कलावा की मदद से लपेट लें और इसे कलश पर रखें।
- इसके बाद नारियल पर हल्दी-कुमकुम और अक्षत अर्पण करें।
घटस्थापना -
- घटस्थापना के लिए सबसे पहले एक मिट्टी का बड़ा कटोरा लें।
- उसमें साफ गीली काली मिट्टी भरें, अब इसमें ‘जौ या गेहूं’ जो आपके पास उपलब्ध हो, वो बो दें।
- घट पर हल्दी और कुमकुम लगाएं और कलावा चढ़ाएं।
- इसे अंजुली की मदद से पानी डालकर सींचे।
अखंड ज्योत -
- अखंड ज्योत के लिए एक दीपक में घी या तेल लेकर दीपक जलायें और इसे एक आवरण से ढंकें।
- ध्यान दें की नवरात्रि के दौरान प्रज्जवलित यह ज्योत लगातार जलती रहे।
माता का आह्वान: मंत्र, पंचोपचार-
- माता दुर्गा के लिए ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र के साथ माता शैलपुत्री का आह्वान करें और ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ मन्त्र का पांच-पांच बार जप करें।
- इस आह्वान के बाद अब माता को कुमकुम-हल्दी लगाएं।
- तद्पश्चात माँ को फूल और माला पहनाएं।
सामग्री अर्पण -
- इसके बाद माँ दुर्गा को लाल चुनरी, पूरा श्रृंगार और फल अर्पित करें।
- माता शैलपुत्री को सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है, इसीलिए माँ शैलपुत्री को सफ़ेद रंग की पुष्पमाला और सफ़ेद रंग का उपवस्त्र चढ़ाएं।
- माता दुर्गा को हलवा-पुड़ी का भोग लगाएं।
- माँ शैलपुत्री को सफेद मिठाई बहुत प्रिय है, इसीलिए पहले दिन की पूजा में सफेद मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
- यदि आप सम्पूर्ण श्रृंगार एकत्रित नहीं कर पाएं, तो माता को मेहन्दी अवश्य अर्पित करें। यह माता के प्रिय श्रृंगारों में से एक है।
- माँ शैलपुत्री के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
दुर्गा सप्तशती पाठ / मंत्र -
- आप दुर्गा सप्तशती को नमन करके इसका पाठ करें।
- यदि आप दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक साथ करने में असमर्थ हैं, तो इसे अपने समयनुसार कर सकते हैं। आप इसे कभी भी श्रीमंदिर के माध्यम से भी सुन सकते हैं।
आरती व समापन -
- अब इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती करें।
इस लेख में आपके लिए माँ दुर्गा और माँ शैलपुत्री की आरती उपलब्ध है। आरती पूरी करने के लिए नीचे लेख को पूरा देखें
॥ आरती देवी शैलपुत्री जी की ॥
शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी।तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू। दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो।सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें।प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे।शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो।चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥
इसके बाद माँ दुर्गा की आरती करें।
॥ दुर्गा आरती ॥
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दो नैना चन्द्रवदन नीको।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी।।
ओम जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
ब्रम्हाणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शव पटरानी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चौसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
तुम ही जग की माता, तुम ही भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख संपत्ति करता।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, जपत हराहर स्वामी सुख संपति पावे।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
सभी में प्रसाद वितरित करने के बाद खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
इस तरह आपकी इस पूजा का समापन होगा।
चूँकि प्रथम दिन की पूजा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह दिन माँ नवदुर्गा के प्रथम अवतार माँ शैलपुत्री का दिन माना जाता है, और इस दिन की गई पूजा आपके लिए बहुत लाभदायक होगी, इसीलिए इसे अवश्य करें। इस वीडियो और लेख के माध्यम से आप संपूर्ण पूजा को सबसे सरलतम विधि से संपन्न कर पाएंगे और माँ दुर्गा का आशीष आपको जरूर प्राप्त होता। नवरात्रि के हर दिन की पूजा से जुड़ी जानकारियों के लिए श्रीमंदिर से जुड़े रहिए।
जय माता की!