माँ चंद्रघंटा की पूजा | Chandraghanta Puja
माँ दुर्गा के तीसरे शक्ति स्वरूप को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन अर्थात 05 अक्टूबर, शनिवार को देवी जी के इस स्वरूप की साधना की जाएगी।
सबसे पहले बात करते हैं कि तृतीया तिथि का प्रारंभ और समापन कब होगा-
05 अक्टूबर, तीसरा दिन- तृतीया तिथि, मां चंद्रघंटा पूजा
तृतीया तिथि प्रारंभ: 05 अक्टूबर, शनिवार 05:30 AM तृतीया तिथि समापन 06 अक्टूबर, रविवार 07:49 AM
माता का यह रूप स्वर्णिम और अलौकिक है। दस भुजाओं वाली देवी चंद्रघंटा के मस्तक पर मुकुट सुशोभित है। जिसमें घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है। यही कारण है कि माता के इस स्वरूप को चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा से होने वाले लाभ :
शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक के समस्त पाप और बाधाओं का नाश होता है। माँ का यह रूप सुख-शांति प्रदान करने वाला है, तथा इनकी साधना करने से साधक को सभी तरह के रोग और दोषों से मुक्ति मिलती है।
माँ चंद्रघंटा को लाल रंग अतिप्रिय है। और इस बार शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा के लिए शुभ रंग नीला है।
**माँ चन्द्रघंटा की पूजा कैसे करें **
- सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
- आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
- इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
- इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
- अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
- इसके बाद अब ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥ मन्त्र के द्वारा माँ चंद्रघंटा का आह्वान करें।
- साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित मन्त्र का भी उच्चारण करें।
इस मंत्र के साथ माँ चंद्रघंटा का ध्यान करें-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
- प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
- कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
- इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
- नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
- एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
- अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
- इसके बाद माँ चंद्रघंटा की आरती गाएं।
आप श्रीमंदिर पर भी माँ चंद्रघंटा के दर्शन कर सकते हैं। साथ ही माता की आरती का लाभ भी ले सकते हैं।
चंद्रघंटा देवी की आरती
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समान तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बात॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।
अब माँ दुर्गा की आरती करें।
इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।
तो यह थी तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की विधि। शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा के साथ ही माता के नौ रूपों को उनके दिन के अनुसार पूजने से माता आपकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। और पूरे वर्ष आपको माँ आदिशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्रीमंदिर पर आपके लिए नवरात्र के नौ दिनों की पूजा विधि उपलब्ध है। इन्हें जानने के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर से। जय माता की!