Chandra Dev Aarti | चन्द्र देव आरती | Chandra Dev Ji Ki Aarti, Lyrics in Hindi

चन्द्र देव जी की आरती

चंद्र देव की आरती करने से मन की चिंताओं का निवारण होता है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।


चन्द्र देव आरती | Chandra Dev Ji Ki Aarti

चंद्रदेव की पूजा अर्चना और आरती करने से मन शांत रहने के साथ कुंडली से चंद्र दोष मिट जाता है। नित्य चंद्रदेव की आरती करने से चंद्रदेव प्रसन्न होकर जातक के जीवन से सभी प्रकार के विकारों को दूर करते हैं और परिवार में सुख शांति बनाए रखते हैं। तो आइए पढ़ते हैं चंद्रदेव की आरती।

चन्द्र देव जी की आरती | Chandra Dev Aarti

1. चंद्र देव की आरती

ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा । दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी ।

रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी । दीन दयाल दयानिधि, भव बन्धन हारी ।

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे । सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि ।

योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें । ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, सन्त करें सेवा ।

वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी । प्रेमभाव से पूजें, सब जग के नारी ।

शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी । धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे ।

विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी । सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें ।

ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा । दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी ।

2. चंद्रदेव की आरती

ॐ जय श्रीचन्द्र यती, स्वामी जय श्रीचन्द्र यती | अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |

सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता, अगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता |

कर्ण कुण्डल कर तुम्बा गलसेली साजे, कंबलिया के साहिब चहुँ दीश के राजे |

अचल अडोल समाधि पद्मासन सोहे बालयती बनवासी देखत जग मोहे |

कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुट धारी, धर्म हत जग प्रगटे शंकर त्रिपुरारी |

बाल छबी अति सुन्दर निशदिन मुस्काते, भृकुटी विशाल सुलोचन निजानन्दराते |

उदासीन आचार्य करूणा कर देवा, प्रेम भगती वर दीजे और सन्तन सेवा |

मायातीत गुसाई तपसी निष्कामी, पुरुशोत्तम परमात्म तुम हमारे स्वामी |

ऋषि मुनि ब्रह्मा ज्ञानी गुण गावत तेरे, तुम शरणगत रक्षक तुम ठाकुर मेरे | जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगती,

श्रद्धानन्द को दीजे भगती बिमल मती | अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |

ॐ जय श्रीचन्द्र यती, स्वामी जय श्रीचन्द्र यती |

जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा | आरती ओंवाळू पदिं ठेवुनि माथा || धृ.||

उदयीं तुझ्या हृदयीं शीतळता उपजे | हेलावुनि क्षीराब्धी आनंदे गर्जे | विकसित कुमुदिनी देखुनि मनही बहु रंजे | चकोर नृत्य करिती अदभुत सुख माजे || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा

विशेष महिमा तुझा न कळे कोणासी | त्रिभुवनिं द्वादशीराशी व्यापुनि राहसी | नवही ग्रहांमध्यें उत्तम आहेसी | तुझे बळ वांछीती सकळहि कार्यासी || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा

शंकरगणनाथादिक भूषण मिरवीती | भाळी मौळी तुजला संतोषे धरिती | संकटनामचतुर्थीस रूपजन जे करिती | संतत्ती संपत्ति अंती भवसागर तरती || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा

केवळ अमृतरूप अनुपम्य वळ्सी | स्थावर जंगम यांचें जीवन आहेसी | प्रकाश अवलोकितां मन हे उल्हासी | प्रसन्न होउनि आतां लावी निजकांसी || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा

सिंधूतनया बिंदू इंदू श्रीयेचा | सुकर्तिदायक नायक उड्डगण यांचा | कुरंगवाहन चंद्र अनुचित हे वाचा | गोसावीसुत विनवी वर दे मज साचा || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा

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