षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Vrat)
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। षटतिला एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। हमारी मान्यताएं कहती हैं कि यह तिथि मनुष्य को मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान दिलाने में सहायक होती है। इसलिए षटतिला एकादशी पर व्रत करने और भगवान विष्णु का ध्यान करने का बहुत महात्म्य माना गया है।
षटतिला एकादशी व्रत करने से क्या होता है? (What happens by fasting on Shattila Ekadashi? )
- हिन्दू माह माघ में आने वाली षटतिला एकादशी को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भूलवश किये गए पापकर्मों का पश्चाताप करने के लिए षटतिला एकादशी का व्रत और पूजन करना चाहिए।
- इसके साथ ही वे लोग जो वर्ष भर किसी भी तरह का दान - पुण्य और पूजन करने में असमर्थ होते हैं, वे षटतिला एकादशी की पूजा करते हैं।
- आजीवन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए और मृत्यु के बाद विष्णु जी की शरण में जाने के लिए षटतिला एकादशी की विधिवत पूजा की जाती है।
षटतिला एकादशी का महत्व (Importance of Shattila Ekadashi)
षटतिला एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा में नारद मुनि भगवान विष्णु से पूछते हैं कि पृथ्वीलोक पर रहने वाले मनुष्यों को नरक की यातना भोगने से बचाने का क्या उपाय है। तब भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी की महिमा कहकर सुनाई कि जो मनुष्य सदा के लिए मेरी शरण में रहना चाहते हैं, उनके लिए षटतिला एकादशी एक शुभ अवसर होता है।
पद्म पुराण में भी वर्णन मिलता है कि षटतिला एकादशी पर किया गया दान, पूजा और व्रत का लाभ कन्यादान और स्वर्णदान के बराबर पुण्य फलदायी होता है। हजारों वर्षों की तपस्या से जो फल प्राप्त होता है, वही फल एक मात्र षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।
साथ ही अगर आप षटतिला एकादशी के दिन व्रत नहीं भी रख पा रहें हैं तब भी आप अपनी पूजा और दान में तिल का प्रयोग कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर भक्तों द्वारा किया गया तिल का दान और विभिन्न तरह से किया गया तिल का उपयोग बेहद महत्वपूर्ण होता है।
षटतिला एकादशी में तिल का महत्व (Importance of Til “Sesame” In Shattila Ekadashi)
हिन्दू धर्म मे मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई है। इसलिए तिल को नैवेद्य के रूप मे चढ़ाना या उसका दान करना बहुत ही शुभ माना गया है। माघ मास के कृष्ण पक्ष मे एक ऐसी एकादशी मनाई जाती है जो तिल का दान करने के लिए अत्यंत शुभ है। इस दिन तिल का 6 रूपों मे प्रयोग और दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है इसलिए यह एकादशी ‘षटतिला एकादशी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
षटतिला एकादशी के दिन जो व्यक्ति जितने तिल का दान करता है उसे उतने हज़ार वर्षों तक स्वर्ग में स्थान की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का प्रयोग इस प्रकार होता है:
- काले तिल का उबटन
- तिल मिश्रित जल से स्नान
- तिल से हवन
- तिल का तर्पण
- तिल का भोजन और
- विशेष रूप से तिलों का दान
इस प्रकार जो षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं। इस कथन को सत्य मानकर जो भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं।
षटतिला एकादशी 2024 कब है? (When is Shattila Ekadashi 2024?)
साल 2024 में षटतिला एकादशी का व्रत 6 फरवरी मंगलवार को रखा जाएगा। भगवान विष्णु को समर्पित यह महत्व सभी 24 एकादशियों में महत्वपूर्ण है, इस दिन सच्चे मन और प्रभु के प्रति सच्ची आस्था के साथ लिए गए व्रत से मनुष्य को सभी सुखों का आशीर्वाद मिलता है। और उसकी सभी मनोकमंयें पूरी होती हैं ।
षटतिला एकादशी व्रत 2024 शुभ मुहूर्त (Shattila Ekadashi Vrat 2024 Shubh Muhurat )
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 05 फरवरी 2024 को शाम 05 बजकर 24 मिनट से एकादशी तिथि समाप्त - 06 फरवरी 2024 को शाम 04 बजकर 07 मिनट पर
7 फरवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - सुबह 06 बजकर 38 मिनट से सुबह 08 बजकर 52 मिनट तक पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - दोपहर 02 बजकर 02 मिनट
षटतिला एकादशी व्रत की पूजा विधि (Puja Vidhi Of Shattila Ekadashi )
- इस दिन प्रातःकाल में उठकर तिल का उबटन लगाएं और जल में तिल डालकर स्नान करें।
- नित्य कर्मों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले। षट्तिला एकादशी का व्रत निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत रखा जा सकता है।
- पूजन के लिए एक चौकी पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले जल, अक्षत, फूल अर्पित कर हल्दी का तिलक करें। फिर पांच मुट्ठी तिल लेकर 108 बार ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
- भगवान को धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर आज की एकादशी व्रत की कथा का पठन या श्रवण करें।
- पूजन के अंत में आरती करें। उसके बाद प्रसाद ग्रहण करके दिन भर यथाशक्ति व्रत रखें।
- दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन खिलाएं जिसमें तिल के पदार्थ भी शामिल हो।
- फिर दक्षिणा और तिल का दान करें और शुभ मुहूर्त मे व्रत का पारण करें।