त्रिपुर भैरवी | Tripura Bhairavi Jayanti 2024
ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥
ये मन्त्र माता पार्वती के दिव्य स्वरूप त्रिपुर भैरवी को समर्पित है। हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को माता त्रिपुर भैरवी के अवतरण दिवस के रूप में त्रिपुर भैरवी जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष पंचांग के अनुसार त्रिपुर भैरवी जयन्ती 15 दिसंबर 2024, रविवार को मनाई जाएगी।
त्रिपुर भैरवी कौन है, कैसे हुआ इनका जन्म? | Tripura Bhairavi
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती के अनेक अवतार और रूप-विग्रह हैं। हमारे पुराणों में माता भगवती से जन्मी दस महाविद्यायों का भी वर्णन मिलता है। इन महाविद्यायों में से एक हैं त्रिपुर भैरवी !
माता त्रिपुरभैरवी का सम्बन्ध भगवान शिव के रौद्र रूप-विग्रह काल भैरव से है। माँ भैरवी को विध्वंस का साक्षात् स्वरूप माना जाता है। त्रिपुर भैरवी को उनके भक्तों द्वारा भव-बन्ध-मोचन की देवी और बंदी-छोड़ माता कहकर पुकारा जाता है। जिसका अर्थ है कि माता का यह स्वरूप मनुष्य को सभी प्रकार के भय और बंधनों से मुक्ति दिलाता है। इसलिए माता के परम साधक त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन विशेष रूप से माता की उपासना करते हैं।
इनके अवतरण से जुड़ी एक पौराणिक कथा है - कि, एक बार माँ कालिका के मन में यह इच्छा जागृत हुई कि वे अपना गौरवर्ण पुनः धारण करें। लेकिन यह इतना सरल नहीं था, इसलिए अपनी इस इच्छा पूर्ति के लिए माता कुछ समय के लिए अंतर्ध्यान हो गईं। थोड़े समय बाद जब भगवान शिव ने माता को अपने साथ नहीं पाया तो वे उन्हें ढूंढने लगे। तब उनके समक्ष नारद ऋषि प्रकट हुए। नारद मुनि को समक्ष जगत का समाचार मालूम होता था, इसलिए भगवान शिव ने उनसे माता पार्वती जो उस समय कालिका रूप में थी, के बारे में पूछा।
नारद ऋषि ने शिव जी को बताया कि माता के सुमेरु पर्वत के उत्तर दिशा में होने की संभावना प्रबल है। यह सुनकर शिवजी ने नारद जी को सुमेरु पर्वत पर विराजित माता के पास उनसे विवाह करने के प्रस्ताव के साथ भेजा।
जब नारद ऋषि माता कालिका के पास पहुंचें, तब वहां माता षोडशी (त्रिपुर सुंदरी) स्वरूप में उपस्थित थीं। महर्षि नारद जी ने उस देवी से शिवजी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव सुनकर देवी अत्यंत क्रुद्ध हो गई और क्रोधवश उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ। और इस प्रकार देवी आदिशक्ति के षोडशी अवतार से छाया-विग्रह “भैरवी (त्रिपुर भैरवी)” का प्राकट्य हुआ।
इसी भैरवी अवतार ने काल भैरव से विवाह किया। त्रिपुर सुंदरी माता ने ही चण्ड-मुण्ड नामक असुरों का संहार किया था।
माता त्रिपुर भैरवी का स्वरुप
देवी त्रिपुर भैरवी के दो स्वरूप है।
एक स्वरूप में देवी भैरवी माता कालिका के समान रौद्र अवतार में हैं। उनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। चार में से तीन भुजाओं में तलवार, त्रिशूल और दैत्य का कटा हुआ सिर हैं और उनकी चौथी भुजा अभय मुद्रा में है, जिससे वे भक्तों से भय से मुक्त होने का आशीर्वाद दे रहीं हैं।
दूसरे स्वरूप में देवी भैरवी माता पार्वती के समान हैं। इस स्वरूप में दस हजार उदयमान सूर्यों के तेज से चमकती देवी भैरवी की चार भुजाएँ हैं। जिनमें से दो भुजाओं में पुस्तक और माला हैं। शेष दो भुजाएं अभय और वरद मुद्रा में हैं। इस स्वरूप में माता कमल के फूल पर विराजमान हैं।
त्रिपुर भैरवी जयंती पर की जाने वाली आसान पूजा
- माता त्रिपुर भैरवी की जयंती पर माता के मंदिर में जाकर दर्शन-पूजा करें।
- यदि यह संभव नहीं हो तो घर में ही प्रातः काल स्नान करके, व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- पूजा करने के लिए घर के मंदिर को साफ करें। अब मंदिर और इसमें उपस्थित सभी देवी-देवताओं पर गंगाजल छिड़कें।
- इसके बाद माँ दुर्गा अथवा माँ काली को पंचोपचार अर्पित करें। इस दिन माता को लाल फूल अवश्य चढ़ाएं।
- इसके बाद धूप-दीप जलाकर माता को भोग लगाएं।
- यदि संभव हो तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अथवा इसे श्री मंदिर के माध्यम से सुनें।
- इसके बाद माता की आरती करें और परिवार के अन्य सदस्यों में प्रसाद वितरित करें।
- पूजा करने के बाद माता के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करें, और पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा अवश्य मांगे।
- पूरे दिन व्रत करके शाम को कुछ सात्विक भोजन खाकर इस व्रत को संपन्न करें।
त्रिपुर भैरवी जयंती पर पूजा करने के लाभ
- माता त्रिपुर भैरवी की पूरी श्रद्धा से की गई साधना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है, और असंभव कार्य के सिद्ध होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
- माँ भगवती के इस रूप की साधना और तप से मनुष्य के अहंकार का नाश होता है। और वह हर तरह की भ्रान्ति से दूर होकर सृष्टि को एक नए दृष्टिकोण से देखने में सक्षम बनता है।
- पूर्ण भक्ति-भाव से मन्त्र-जाप, पूजा, होम-यज्ञ आदि करने से देवी त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं। भले ही माँ भैरवी देवी आदिशक्ति का रौद्र स्वरूप हैं, फिर भी माता अपने सच्चे उपासकों के प्रति हमेशा उदार रहती हैं।
इसी प्रकार अन्य धार्मिक लेखों को पढ़ने व त्योहारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए बने रहें श्री मंदिर के साथ, धन्यवाद।