शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। अगर आप भगवान शिव और माता पार्वती के आशीष से जीवन में सुख-समृद्धि पाने की कामना करते हैं और जीवन के उपरांत मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह व्रत आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। चलिए जानते हैं, शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत कब किया जाएगा-
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 27 सितम्बर को पड़ रही है।
शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरूआत 27 सितम्बर, 01:45 ए एम से होगी और तिथि का समापन 27 सितम्बर को 10:18 पी एम पर होगा। वहीं पूजा का शुभ 06:12 पी एम से 08:36 पी एम तक रहेगा
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है जो की हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है और इसकी पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है।प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के बाद रात्रि का प्रथम पहर, जिसे सायंकाल भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में नकारात्मकता समाप्त होती है और सफलता मिलती है। साथ ही व्यक्ति को मन की शांति भी प्राप्त होती और भगवान के आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि आती है।
प्रदोष व्रत शुक्ल की पूजा विधि:
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिव जी का स्मरण करके और व्रत का संकल्प लेकर अपने दिन की शुरुआत करें। इसके बाद पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान आदि करके सभी नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं। तत्पश्चात् स्वच्छ कपड़े धारण करके सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें और घर के मंदिर में दीपक जलाएं।दीप प्रज्वलित करके भोलेनाथ का गंगाजल और कुशा से अभिषेक करें,अगर आपको कुशा नहीं मिलती है तो आप दूध का उपयोग भी कर सकते हैं।
इसके बाद उनके चरणों में पुष्प,फल, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध,दही, घी, शहद, चंदन,रोली, तुलसी दल, बेलपत्र और पंचामृत अर्पित करें और शिव चालीसा पढ़े, इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप भी कर सकते हैं। आरती के साथ पूजा का समापन करें। प्रदोष व्रत की पूजा के लिए सूर्यास्त के समय को शुभ माना जाता है, इसलिए शाम के समय मंदिर में दीपक जलाएं। साथ ही व्रत कथा सुनें और भगवान शिव, देवी पार्वती समेत नन्दी, कार्तिकेय जी, गणेश जी और सर्पदेव की पूजा करें।वहीं भोलेनाथ को दोबारा पूजा सामग्री चढ़ाएं और आरती करें। विधि-विधान के साथ पूजा करने के बाद फलाहार का सेवन करें। फिर अगले दिन व्रत का पारणा करें।
तो यह थी प्रदोष व्रत की संपूर्ण पूजा विधि। प्रदोष व्रत की व्रत कथा इस पूजा का अहम् हिस्सा है, उसे सुनने के लिए श्री मंदिर के ऐप पर जाएं। आपकी पूजा और व्रत फलीभूत हो।