देवुत्थान एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2024 Kab Hai, Date, Time, Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Samagri

देवुत्थान एकादशी 2024

देवउठान एकादशी 2024 कब है? जानें तारीख, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि का सही तरीका!


देवुत्थान एकादशी | Dev Uthani Ekadashi 2024

  • देवुत्थान एकादशी 2024 / कब मनायी जाएगी देवुत्थान एकादशी
  • देवुत्थान एकादशी 2024 का शुभ मुहूर्त व तिथि
  • क्यों मनाते हैं देवुत्थान एकादशी? / देवुत्थान एकादशी का महत्व
  • देवुत्थान एकादशी की पूजा सामग्री
  • जानिए देवुत्थान एकादशी की आसान पूजा विधि
  • देवुत्थान एकादशी व्रत के नियम
  • देवुत्थान एकादशी व्रत के लाभ क्या है?
  • देवुत्थान एकादशी पर इन बातों का रखें ध्यान

देवुत्थान एकादशी कब है जानें शुभ मुहूर्त

साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों में से देवउत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी का हिंदू संस्कृति में विशेष महत्व है। इस दिन से ही भगवान विष्णु जागृत अवस्था में आते हैं। पंचांग के अनुसार यह एकादशी कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन पड़ती है। यह दिन चातुर्मास यानि की चार माह की अवधि का समापन भी होता है जो कि भगवान विष्णु की शयन अवधि मानी जाती हैं।

इस लेख में हम ये जानेंगे?

  • वर्ष 2024 में देवउत्थान एकादशी कब है?
  • देवउत्थान एकादशी के अन्य शुभ मुहूर्त

वर्ष 2024 में देवउत्थान एकादशी कब है?

  • देवउत्थान एकादशी व्रत 12 नवंबर 2024, मंगलवार को किया जायेगा।
  • 12 नवम्बर को पारण करने का समय सुबह 06 बजकर 14 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय शाम 01 बजकर 01 मिनट होगा।
  • एकादशी तिथि 11 नवम्बर की रात 06 बजकर 46 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • एकादशी तिथि का समापन 12 नवम्बर को रात 04 बजकर 04 मिनट पर होगा।

चलिए अब जानते हैं देवउत्थान एकादशी के शुभ मुहूर्त-

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04 बजकर 29 मिनट से प्रातः 05 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
  • प्रातः सन्ध्या मुहूर्त प्रात: 04 बजकर 55 मिनट से सुबह 06 बजकर 13 मिनट तक होगा।
  • इस दिन अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 20 मिनट से 12 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
  • विजय मुहूर्त दिन में 01 बजकर 32 मिनट से 02 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
  • इस दिन गोधूलि मुहूर्त शाम में 05 बजकर 11 मिनट से 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगा।
  • सायाह्न सन्ध्या काल शाम में 05 बजकर 11 मिनट से 06 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।
  • अमृत काल 13 नवम्बर की मध्यरात्रि 01 बजकर 19 मिनट से 02 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
  • निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 16 मिनट से 12 बजकर 08 मिनट (नवम्बर 13)

इस दिन दो विशेष योग भी बन रहे हैं-

  • सर्वार्थ सिद्धि योग शाम 07 बजकर 52 मिनट से 13 नवंबर को 05 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
  • रवि योग सुबह 06 बजकर 13 मिनट से शाम 07 बजकर 52 मिनट तक रहेगा।

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी की पूर्व संध्या पर शयन काल में जाते हैं एवं देवउत्थान एकादशी की पूर्व संध्या पर जागृत होते हैं। ऐसा माना जाता है कि, इन चार महीनों की अवधि के दौरान, कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। भगवान विष्णु के उठने के बाद से सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं।

देवोत्थान एकादशी क्या होता है?

कार्तिक मास को हिन्दू कैलेंडर में बहुत ही महत्वपूर्ण माह माना जाता है। इसका कारण है कार्तिक माह में मनाए जाने वाले अनेक पर्व। इस माह में आने वाले अनेक विशेष पर्वों में से एक देवोत्थान एकादशी है।

देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है। देवोत्थान का अर्थ है देव का उत्थान या उठना। इसे प्रबोधिनी एकादशी और देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

देवोत्थान एकादशी का महत्व

हिन्दू पुराणों के अनुसार आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु चिरनिद्रा में चले जाते हैं। जिसके बाद कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को वे अपनी शयनावस्था से बाहर आते हैं। इसीलिए हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। चूंकि चार माह के बाद इसी दिन से सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य शुरू होते हैं, इसीलिए सनातन धर्म में देवोत्थान एकादशी का बहुत महात्म्य माना जाता है।

ऐसी भी मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत का पालन करने से मनुष्य को सहस्त्र अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है।

देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी पर किये गए व्रत के प्रभाव से मनुष्य को उनके पिछले सात जन्मों के पाप से मुक्ति मिलती है। साथ ही उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

व्रती को देवोत्थान एकादशी पर क्या खाना चाहिए?

भक्तगण अपनी इच्छा शक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार एकादशी व्रत का संकल्प लेते हुए तय कर सकते हैं, कि वे इस दिन किस तरह का आहार ग्रहण करेंगे।

जलाहार - यानी एकादशी का व्रत केवल जल पीकर पूर्ण कर सकते हैं।

क्षीर आहार - क्षीर अर्थात दूध से बने सभी उत्पाद खा सकते हैं।

फलाहार - एकादशी का व्रत केवल फलों का सेवन करके भी पूर्ण कर सकते हैं। कोई भी ऋतुफल जैसे, आम, केले, संतरा आदि इस व्रत के लिए उपयुक्त होंगे।

  • इसके साथ ही यदि आप पूरे दिन का उपवास नहीं कर सकते तो सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक बार भोजन करें।
  • इस भोजन में आप साबूदाना, सिंघाड़ा, शकरकंदी, आलू और मूंगफली आदि का सेवन करें।

एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

देव उठनी एकादशी की सरल पूजा विधि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी तिथि को चार माह की चिर निद्रा के बाद भगवान विष्णु जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दिन से ही सभी तरह के मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। भगवान विष्णु को समर्पित देव उठनी एकादशी व्रत का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, आज हम इस अत्यंत शुभ व्रत एवं पूजा कि सरल विधि आपके लिए लेकर आए हैं।

आइये सबसे पहले हम इस पूजा में इस्तेमाल होने वाली पूजन सामग्री के बारे में जान लेते हैं।

देव उठनी एकादशी की पूजन सामग्री:

  • भगवान विष्णु जी की मूर्ति या चित्र,
  • भगवान विष्णु जी के वामन अवतार की प्रतिमा या चित्र,
  • धान्य, लाल वस्त्र, पुष्प, पुष्पमाला
  • नारियल, सुपारी, ऋतु फल
  • धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल
  • लाल चंदन और मिष्ठान आदि।

देवउठनी एकादशी की व्रत विधि:

  • सर्वप्रथम, इस एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व, दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और इसके साथ ही, उन्हें रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
  • व्रत वाले दिन, प्रात:काल उठकर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद, व्रत का संकल्प लें और घर की सफाई के बाद, पूजा स्थल को भी गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें।
  • पूजा स्थल को शुद्ध करके आप एक आसन पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाएं और इस पर भगवान विष्णु जी के वामन अवतार की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करे दें। इसके साथ ही आप भगवान नारायण जी की प्रतिमा और कलश की भी स्थापना करें।
  • इसके बाद, सेवा भाव से दोनों प्रतिमाओं का गंगा जल से अभिषेक करें और उनकी प्रतिमा के सामने, घी का दीपक जलाएं। फिर श्रीहरि को धान्य, लाल वस्त्र, पुष्प,पुष्पमाला, नारियल, सुपारी, ऋतु फल, धूप, दीप, घी, पंचामृत आदि अक्षत, तुलसी दल, लाल चंदन और मिष्ठान समेत संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
  • भगवान जी को भोग लगाते वक़्त इस बात का विशेष ध्यान रखें, कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीज़ों का ही भोग लगाया जाता है, जिनमें तुलसी को ज़रूर शामिल करें।
  • भगवान विष्णु को केले का पेड़ और तुलसी का पौधा अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस दिन आप उनकी भी पूजा विधि विधान से अवश्य करें। इसके लिए आप दोनों पौधों को तिलक लगाएं, उनके समक्ष धूप-दीप जलाएं। साथ ही उनपर वस्त्र के रूप में उन पर कलावा बांधें। फिर जल अक्षत और नैवेद्य अर्पित करें।
  • ध्यान रहें पूजा के बाद ब्राह्मणों या गरीबों को दान-दक्षिणा अवश्य दें। कहा जाता है ऐसा न करने पर उपासक की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए दान-दक्षिणा करें और उसके पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
  • इसके बाद आप देव उठनी एकादशी कथा का श्रवण करें और भगवान विष्णु जी की आरती उतारें। आरती के बाद प्रसाद वितरित करें और स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
  • अगले दिन विधि विधान से पूजन और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें।

तो इस प्रकार विधिपूर्वक पूजा करके आप देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का आशीष प्राप्त कर सकते हैं।

देवुत्थान एकादशी व्रत के नियम

कार्तिक माह में मनाए जाने वाले अनेक विशेष पर्वों में से एक है देवुत्थान एकादशी। देवुत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है। देवुत्थान का अर्थ है देव का उत्थान या उठना। इसे प्रबोधिनी एकादशी और देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवुत्थान एकादशी व्रत के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन कर आप अपनर व्रत को सफल बना सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि देवुत्थान एकादशी व्रत के नियम क्या हैं?

एकादशी के दिन न करें ये कार्य!

सेम, गेहूं, चावल और दाल सहित किसी भी प्रकार के अनाज का सेवन न करें, यह एकादशी व्रत के दौरान वर्जित हैं। कई लोग एकादशी पर भोजन के लिए कुट्टू का आटा और बाजरा चावल (मोरधन) का भी सेवन करते है। चूँकि इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म अनाज माना जाता है। इसीलिए एकादशी में इन चीजों से बचना ही बेहतर है।

एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर करें। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

व्रत करने वाले मनुष्य को पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए, आप चाहे तो किसी मंदिर में जाकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, और इसे श्री मंदिर के माध्यम से सुनें। और हाँ, आप इस दिन अपनी इच्छानुसार दान करना न भूलें।

एकादशी व्रत से मिलने वाले 5 लाभ!

भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।

एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-

पहला लाभ- कठिन लक्ष्य एवं कार्यों की सिद्धि

ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।

दूसरा लाभ- आर्थिक प्रगति एवं कर्ज से मुक्ति

इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।

तीसरा लाभ- मानसिक शांति की प्राप्ति

इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।

चौथा लाभ- पापकर्मों से मुक्ति

एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।

पांचवा लाभ- मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति

श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।

तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।

एकादशी पर रखें इन 6 बातों का विशेष ध्यान

सावधान! एकादशी पर रखें इन 6 बातों का विशेष ध्यान

दोस्तों! हिन्दू धर्म में एक वर्ष में आने वाली लगभग चौबीस एकादशी तिथियां होती हैं। हर एकादशी जितनी पुण्य फलदायक होती है, उतना ही इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी के दिन जाने-अनजाने में की गई भूल-चूक से आपका व्रत और पूजन पूरी तरह से निष्फल हो सकता है, इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी सावधानियों के बारे में जो आपको इस विशेष दिन पर बरतनी चाहिए।

प्रातः देर तक न सोएं

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के काफी समय बाद तक न सोएं। एकादशी के दिन देर तक सोने से आपके घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। इस दिन देर तक सोने से जो सफलता आप पाना चाहते हैं, उसमें आप पिछड़ सकते हैं। यदि किसी कारण से व्रत नहीं भी रख पा रहे हैं, तो भी जल्दी उठकर दैनिक कार्य शुरू करें।

उपाय : सुबह जल्दी उठें, स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें।

चावल का सेवन न करें

एकादशी के दिन चावल के सेवन को खास रूप से वर्जित माना जाता है। यदि आप पूरे दिन का व्रत छोड़कर एकासना व्रत अर्थात एक समय भोजन करने वाला व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रहें, इसमें चावल या चावल से बनी कोई भी खाद्य वस्तु न हो। कई किंवदंतियां बताती हैं कि एकादशी पर चावल खाने से यह अति फलदायी व्रत निष्फल हो जाता है।

उपाय : दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।

तामसिक भोजन को त्यागें

एकादशी के पूरे दिन आप तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा, रात का बचा जूठा भोजन आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आप इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इससे सावधान रहें। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।

उपाय : बिना लहसुन-प्याज से बना सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।

परनिंदा न करें

वैसे तो परनिंदा करना किसी पाप से कम नहीं है, और रोज ही आपको ऐसा करने से बचना चाहिए, लेकिन एकादशी के दिन यह कार्य भूलकर भी न करें। किसी का दिल न दुखाएं और झूठ न बोलें। भगवान विष्णु को दीनबंधु कहा जाता है, और वे हर कण में विद्यमान हैं। इसीलिए इस शुभ दिन पर कम बोलें लेकिन अच्छा ही बोलें।

उपाय : विचारों एवं वाणी पर संयम रखें। साथ ही इस दिन दान करें, यह कर्म आपको सीधे ईश्वर से जोड़ता है।

बाल और नाख़ून न काटें

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाएं और नाख़ून काटने से भी बचें। यह दोनों ही काम आपके घर में सुख-संपन्नता को बाधित करते हैं, और ऐसा करने से आपके घर में क्लेश हो सकता है। साथ ही आप अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखें, स्नान करें लेकिन बाल नहीं धोएं। यदि यह बाल और नाख़ून आपके भोग और भोजन में मिल जाए तो उसे दूषित कर सकते हैं।

उपाय : दशमी या द्वादशी पर पारण के बाद बाल कटवाएं या नाख़ून काटें।

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य न तोड़ें

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। इस व्रत के पालन में बहुत सावधानी बरतें। मन में कोई भी व्याभिचार नहीं आने दें। भगवान विष्णु बहुत दयालु हैं, लेकिन आपका यह कृत्य आपको भगवान विष्णु के कोप का भागी बना सकता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही आपके मन और विचार भी शुद्ध होंगे।

उपाय : इस दिन मंदिर जाएं और जितना संभव हो, प्रभुनाम का स्मरण करें।

तो यह थी देवुत्थान एकादशी के महत्व से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। हम कामना करते हैं कि आपकी देवुत्थान एकादशी बिना किसी विघ्न के पूर्ण हो और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों।

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