भाई दूज 2023
भाई-बहन के परस्पर प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक भाई दूज का पर्व दीपावली के महोत्सव का एक महत्पूर्ण हिस्सा है। यह कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन अर्थात दीपावली के दो दिन बाद पड़ता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक एवं आरती करके, उनके लम्बे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं। जिसके बाद भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। आइये इस भाई दूज पर अपने प्रिय भाई को तिलक करने का शुभ समय जानते हैं -
पंचांग के अनुसार दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से 03 बजकर 27 मिनट तक तिलक करने का सबसे शुभ मुहूर्त रहेगा। जिसकी कुल अवधि 02 घण्टे 14 मिनट की रहेगी। भाई दूज - 26 अक्टूबर 2022, बुधवार तिलक का शुभ समय - 01:12 PM से 03:27 PM कुल अवधि - 02 घण्टे 14 मिनट
भाई दूज का यह पावन पर्व दक्षिण भारत में यम द्वितीया के रूप में जाना जाता है, जबकि उत्तर भारत में यह त्यौहार भाई दूज के रूप में घर-घर में प्रसिद्ध है। दोस्तों, भाई-बहन के स्नेह को दर्शाने वाला यह त्यौहार संपूर्ण भारतवर्ष में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। जैसे - भाऊ बीज, भात्र द्वितीया और भतरु द्वितीया। लेकिन इस पर्व का सार और महत्व सभी स्थानों पर एक ही जैसा है।
भाई दूज क्यों मनाया जाता है?
मान्यताओं के अनुसार कई कथाऐं और कहानियां हैं जो भाई दूज की मनाने की परंपरा से जुड़ी हुईं हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि इस दिन, मृत्यु के देवता भगवान यम ने अपनी बहन यमी या यमुना से भेंट की थी। यमुना ने ‘आरती’ और मालाओं से अपने भाई का स्वागत किया, उनके माथे पर ‘तिलक’ लगाया और उन्हें मिठाई व विशेष व्यंजन भोजन के रूप में खिलाए। इसके बदले में, यमराज ने उसे एक अनोखा उपहार दिया और कहा कि इस दिन जो भाई अपनी बहन द्वारा आरती और तिलक का अभिवादन पाऐंगे, उन्हें लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलेगा। इसी कारण इस दिन को ‘यम द्वितीया’ या ‘यमद्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है। एक अन्य कथा में बताया गया है कि भगवान कृष्ण, राक्षसों के राजा नरकासुर का वध करने के बाद, अपनी बहन, सुभद्रा के पास गए थे, और सुभद्रा जी ने उनका स्वागत मिठाई, माला, आरती और तिलक लगाकर किया था। इस प्रकार भाई दूज के पर्व की शुरूआत हुई।
भाई दूज का महत्व क्या है?
हिन्दू धर्म में कई सारे रीति रिवाज विद्यमान हैं, जिनका अपना अलग ही महत्व होता है। इनमें से भाईदूज एक ऐसा उत्सव है जो खासतौर पर भाई-बहन के प्रेम को समर्पित होता है। इस दिन भाई और बहन के बीच प्रेम की भावना देखने को मिलती है।
इस दिन विवाहित बहनें अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित करती है और अपने भाई को प्रेमपूर्वक भोजन कराती है। बहन अपने भाई को तिलक करती हैं और उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, जिसके बाद भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं।
दोस्तों इस तरह भाई दूज का पर्व भी रक्षाबंधन के त्यौहार की ही तरह भाई बहनों के बीच के अमर प्रेम को बढ़ाने वाला त्योहार है। यह एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाने और सुखमय जीवन के लिए किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन जो कोई भी बहन विधि पूर्वक और शुभ मुहूर्त में अपने भाई का तिलक करती है और फिर पूजा आदि करती है उसके भाई के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और उनकी उम्र लंबी होती है।
भाई दूज व्रत की पूजा विधि
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई दूज के नाम से जाना जाता है। इस दिन सभी बहनें अपने भाई को भोज के लिए निमंत्रित करती हैं। और उन्हें तिलक करके उनकी लम्बी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। चलिए जानें इस दिन व्रत और पूजा कैसे की जाती है और क्या है इसके लिए आवश्यक सामग्री -
भाई दूज पूजा के लिए आवश्यक सामग्री : पूजा की थाली, फल, फूल, दीपक, अक्षत, मिठाई, देसी घी, जल इसके अतिरिक्त आप अपने भाई को उपहार स्वरूप देने के लिए श्री-फल, मिठाई और वस्त्र आदि भी रख सकती हैं।
भाई दूज की पूजा विधि
- भाई दूज के दिन प्रातःकाल तेल-उबटन आदि करने के बाद स्नान करें। स्नान से निपटकर स्वच्छ नए कपड़े पहनें।
- घर के पूजास्थल में पंचोपचार की क्रिया द्वारा सभी देवों की पूजा करें। भाई बहन एक दूसरे के मंगल की ईश्वर से प्रार्थना करें।
- भाईदूज का तिलक सामान्यतः मध्याह्न-काल में किया जाता है। इस समय में भाई अपनी बहनों के घर पहुंचे।
- बहनें एक थाली में हल्दी, कुमकुम, अक्षत, दीया आदि रखकर पूजा की थाली तैयार करें।
- इसके बाद बहनें अपने भाई को एक चौकी पर बिठायें। और भाई एक रुमाल से अपने सिर को ढंक लें।
- चौकी पर बैठे भाई को हल्दी, कुमकुम अक्षत से तिलक लगाएं। तिलक लगाने के बाद भाई के हाथ में कलावा बांधें। और अब उनकी आरती उतारें।
- अब बहनें भाई को मिठाई खिलाएं। और भाई बहन के द्वारा बनाए गए पकवान का आनंद लें।
- यदि भाई और बहन एक ही घर में रहते हैं, तो दोनों साथ में मध्याह्न भोजन करें। इसके बाद बहन अपने भाई को तिलक कर सकती हैं।
- अब भाई वस्त्र और अन्य उपहार देकर बहन का आभार व्यक्त करें।
ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन अपनी विवाहित बहनों को वस्त्र-दक्षिणा आदि देते हैं, उन्हें आने वाले वर्ष में सफलता प्राप्त होती है और बहन के आशीर्वाद से उनके धन, यश, आयु, और बल की वृद्धि होती है।
भाई दूज की पौराणिक कथा
भैया दूज के संबंध में पौराणिक कथा इस प्रकार से है। सूर्य की पत्नी संज्ञा से 2 संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई। छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं।
यमुना अपने भाई यमराज के यहाँ प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करती। तथा यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, किंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।
एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहाँ से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।
यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहाँ आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे।
यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दीनो तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।
इस दिन अगर अपनी बहन न हो तो ममेरी, फुफेरी या मौसेरी बहनों को उपहार देकर ईश्वर का आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का खाना खाता है, उसे धर्म, धन, अर्थ, आयुष्य और विविध प्रकार के सुख मिलते हैं। साथ ही यम द्वितीय के दिन शाम को घर में बत्ती जलाने से पहले घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करना भी फलदायी होता है।