श्राद्ध का नौवां दिन

श्राद्ध का नौवां दिन

7 अक्टूबर, 2023 जानें श्राद्ध के नौवें दिन का महत्व


श्राद्ध का नौवां दिन( Ninth Day of Shraddha)

श्राद्ध के नौवें दिन सुहागिन महिलाएं और माताओं का श्राद्ध किया जाता है। इस कारण इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है। इस दिन श्राद्ध करता को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मनचाहा दाम्पत्य सुख भी मिलता है।

नौवें श्राद्ध का महत्व (Importance of Ninth Shraddha)

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों के लिए समर्पित होते हैं। इन 16 दिनों में लोग अपने पूर्वजों के मोक्ष और आत्म शांति के लिए तर्पण व पिंडदान करते हैं। वह अपने पूवर्जों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और साथ ही उनकी मुक्ति की कामना भी करते हैं। माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और वह स्वर्ग को जाते हैं । इन दिनों में यदि पितर प्रसन्न होते है तो वह अपने आशीर्वाद में सुख और समृद्धि देकर जाते है। लेकिन यदि पितर नाराज हो गए तो वह परिवार सुख से नहीं रह पाता है। इसलिए पितृ पक्ष का विशेष महत्त्व होता है।

नौवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त(Date and auspicious time of Ninth Shraddha)

नवमी श्राद्ध - नौैवां श्राद्ध नवमी तिथि आरम्भ - 07 अक्टूबर, 2023 को सुबह 08:08 बजे नवमी तिथि की समाप्ति - 08 अक्टूबर, 2023 को सुबह 10:12 बजे नवमी श्राद्ध शनिवार, 07 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:32 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:32 बजे से दोपहर 01:19 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:19 बजे से दोपहर 03:40 बजे तक अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट

नौवें श्राद्ध की कहानी (Story of Ninth Shraddha)

श्राद्ध से जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रचलित है। जो महाभारत काल से सम्बंधित है जिसमे श्राद्ध की शुरुआत की कहानी को वर्णित है। इस कहानी के अनुसार कौरव-पांडवों के मध्य युद्ध की समाप्ति के उपरांत जब सब कुछ ख़त्म हो गया और दानवीर कर्ण की मृत्यु हो गयी तो मृत्यु के बाद वह स्वर्ग पहुंचे। वहां उन्हें भोजन में सोना, चांदी और गहने परोसे गये। यह देखकर दानवीर कर्ण आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने इंद्र देव से इसका कारण पूछा।

दानवीर कर्ण द्वारा इस प्रकार पूछने पर इंद्र ने बताया कि आपने अपने सम्पूर्ण जीवन में सोने चाँदी और हीरे मोती का ही दान किया है। आपने अपने जीवन में कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन का दान नहीं दिया है। इस कारण ही आपको यह भोजन मिला है। यह सुनकर दानवीर कर्ण ने कहा कि उन्हें अपने पूर्वजों के विषय में कोई ज्ञान नहीं है। इस कारण वह ऐसा करने के लिए असमर्थ थे। तब इंद्र देव ने कर्ण को वापस पृथ्वी पर 16 दिनों के लिए भेजा ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान दे सकें और तर्पण कर सकें। उन्होंने धरती पर आकर वैसा ही किया। और इस तरह वह पितृ ऋण से मुक्त हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुयी। ऐसा माना जाता है कि तभी से श्राद्ध कर्म की शुरुआत हुयी। और पृथ्वीलोक में श्राद्ध कर्म किया जाने लगा।

नौवें श्राद्ध की विधि(Method of Ninth Shraddha)

  • यदि आप श्राद्ध कर्म कर रहे है तो एक योग्य ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और साथ ही अपनी सामर्थ शक्ति अनुसार दान भी देना चाहिए।
  • श्राद्ध के दौरान पितरों को तर्पण देना चाहिए। यह कार्य दोपहर के समय ही किया जाता है। पितरों की पूजा करने और तर्पण के बाद भोजन का कुछ भाग गाय, कुत्ते,कौआ और चींटी के लिए निकालना चाहिए। और जब आप इन्हे भोजन करा रहें हो तो उन समय अपने पितरों का स्मरण करते हुए भोजन ग्रहण करने की विनती करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि वह कौआ के रूप में भोजन ग्रहण करने आते हैं।
  • यदि संभव हो सके तो श्राद्ध कर्म को किसी नदी के किनारे करना चाहिए। क्योंकी नदी के किनारे किए गए श्राद्ध कर्म का विशेष महत्त्व होता है।
  • श्राद्ध के दौरान पितरों की पसंद का भोजन बनाना चाहिए और विशेष रूप से खीर जरूर बनाना चाहिए।

नौवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Ninth Shraddha)

जिन व्यक्तियों की मृत्यु किसी दुर्घटना, शस्‍त्रप्रहार, सर्पदंश, विष, हत्या, अन्य किसी प्रकार से अस्वा‍भाविक मृत्यु और आत्महत्या हुई हो, तो ऐसे लोगो का श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन नहीं करना चाहिए। हिन्दू धर्म में समस्त शुभ कार्यों के लिए दाहिने हाथ का प्रयोग करना बताया गया है। इस कारण दाहिने हाथ से श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है। श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों तक का ही किया जाता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों ही शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से ज्यादा का श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।

नौवें श्राद्ध में क्या करें( What to do on the Ninth Shraddha)

  • श्राद्ध पर्व में ब्राह्मण को बुलाकर भोजन जरूर करवाना चाहिए। और उन्हें दान देकर संतुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते है।
  • यदि श्राद्ध पर्व के दौरान कोई जरूरतमंद व्यक्ति आपके घर आता है तो उसकी मदद जरूर करें। ऐसा माना जाता है की इन 16 दिनों में पितृ किसी भी रूप में आपके घर आ सकते हैं।
  • गया में श्राद्ध कर्म करना बहुत ही महत्त्व रखता है। इसलिए यदि संभव हो सके तो गया जाकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
  • श्राद्ध पर्व के दौरान पशु पक्षियों को भी भोजन कराना शुभ माना गया है।

नौवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the Ninth Shraddha)

  • पितृ पक्ष के 16 दिनों के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य और शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। इन दिनों में सोना, चांदी या अन्य चीजें नहीं खरीदना चाहिए। नए वस्त्र भी नहीं खरीदना चाहिए और न ही पहनना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में यदि कोई श्राद्ध नहीं करता है तो उस परिवार को पितृदोष लग जाता है। जिससे परिवार में सुख समृद्धि नहीं होती है। परिवार के पूर्वज नाराज हो जाते है और उनका आशीर्वाद भी नहीं मिल पाता है।
  • श्राद्ध के दौरान स्नान करते समय तेल, उबटन नहीं लगाना चाहिए। महिलाओ को श्राद्ध वाले दिन अपने बालों को धोना भी वर्जित माना गया है।

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