नर्मदा अष्टकम

नर्मदा अष्टकम

मन को शांति और संतोष मिलता है


श्री नर्मदा अष्टक (Shri Narmada Ashtakam)

हिन्दू धर्म में पर्वतों, नदियों, पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं, पंच-तत्वों सभी को पूजनीय माना जाता है। नदियां जिस भी क्षेत्र से होकर बहती हैं, उस भू-भाग में रह रहे लोगों के लिए वह जीवनदायिनी होती हैं। इसी में एक नर्मदा नदी है जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों में बहती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नर्मदा नदी को मोक्षदायिनी और पापनाशिनी माना जाता है। मां नर्मदा की आराधना से भक्त सभी तरह के पापों से मुक्त हो जाता है। मां नर्मदा की पूजा करते समय श्री नर्मदा अष्टक का पाठ जरूर करना चाहिए। नर्मदा अष्टक पाठ को करने से जातक के मन को काफी शांति मिलती है, साथ ही परिवार में भी सुख समृद्धि आती है।

श्री नर्मदा अष्टक का महत्व (Importance of Shri Narmada Ashtakam)

मध्य प्रदेश के मैखल पर्वत के अमरकंटक से नर्मदा माता निकलती हैं। यहां से मां नर्मदा महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों से बहती हुई सागर में मिल जाती हैं। नर्मदा अष्टक के माध्यम से मां नर्मदा के गुणों, महत्व व शक्तियों का वर्णन किया गया है। साथ ही उनकी उत्पत्ति, उद्देश्य, पुण्य कर्म तथा आशीर्वाद का वर्णन भी किया गया है। यही नर्मदा अष्टक को लिखने का महत्व है। नर्मदा अष्टक नमामि देवी नर्मदे पढ़ने से हमें नर्मदा माता के बारे में संपूर्ण ज्ञान मिलता है। एक तरह से मां नर्मदा के संपूर्ण जीवनकाल और उद्देश्य पूर्ति के बारे में इसी नर्मदा अष्टक के माध्यम से पता चल जाता है। इसी कारण श्री नर्मदा अष्टकम का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

श्री नर्मदा अष्टकम पढ़ने का लाभ (Narmada Ashtakam Benefits)

नर्मदा माता को भगवान शिव से यह आशीर्वाद मिला था कि वे इस संसार में सभी के पापों का नाश करेंगी। इसी कारण जो भी नर्मदा नदी में स्नान करता है या डुबकी लगाता है, मान्यता है कि उसके द्वारा अनजाने में किये गए सभी पापों का नाश हो जाता है। नर्मदा मां को अपने भक्तों को सुख व आनंद प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यह आशीर्वाद उन्हें महादेव ने ही दिया था। ऐसे में यदि आप सच्चे मन के साथ प्रतिदिन श्री नर्मदा अष्टक का पाठ करते हैं तो आपके मन को शांति व संतोष का अनुभव होता है। आपके द्वारा अनजाने में जो भी पाप या भूल हुई है, वह सभी समाप्त हो जाते हैं और मन निर्मल बनता है। ऐसे में आपको प्रतिदिन श्री नर्मदा अष्टक का पाठ करना चाहिए।

नर्मदा अष्टक का हिन्दी में अर्थ (Narmada Ashtakam meaning In Hindi)

॥ श्री नर्मदा अष्टक ॥

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम। कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

हे पापनाशिनी माँ नर्मदा आप मैखल पर्वत के अमरकंटक से निकल कर अविरल बहती हुई समुद्र में मिल जाती हो। इस बीच आपकी अनेकों लहरें उठती हैं जो आपके भक्तों को उनके पापों से मुक्त करती हैं और उनका मन शुद्ध करती हैं। आपके प्रभाव से तो स्वयं काल, यमराज, भूत इत्यादि भी दूर चले जाते हैं। मैं आपका भक्त, आपके चरणों का ध्यान कर प्रणाम करता हूँ। मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं। सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

आपके जल में तो मछली भी परम सुख को प्राप्त करती है और आप हम सभी के भार को हल्का कर देती हैं। आप ही सभी तीर्थों की नगरी हैं। आपके जल में तो मछली, कछुआ, मगरमच्छ इत्यादि जलीय जीव-जंतु सुख से रहते हैं। हे माँ नर्मदा!! मैं आपके चरणों में झुक कर आपको प्रणाम करता हूँ।

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम। जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

हे मां नर्मदा आप अपने अमृत समान जल से धरती के पापों को धोती हैं। आपका कल कल बहता हुआ पानी कई क्षेत्रों से होकर बहता है जिसकी ध्वनि चारों ओर गुंजायमान रहती है। आपने ही महाप्रलय के समय मार्कंडेय ऋषि जी को आश्रय दिया था। मैं आपके चरणों को छूकर उन्हें प्रणाम करता हूँ।

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा। पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

आपके जल पान से तो मार्कंडेय ऋषि, शौनक ऋषि व देवता भी भय मुक्त हो जाते हैं और आप उन्हें अभय का वरदान देती हैं। आपके पावन जल में डुबकी लगाने से मेरे जन्मों जन्म के भय, दुःख, पीड़ा इत्यादि नष्ट हो गयी है। मैं आपके चरणों को नमस्कार करता हूँ।

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम। वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

आप लाखों किन्नरों व देवताओं के द्वारा पूजी जाती हैं। आपके तटों पर भिन्न-भिन्न भांति के पक्षी चहचहाते हैं। वशिष्ठ ऋषि, पिप्पलाद, कर्दम ऋषि इत्यादि आपको ही पूजते हैं। मैं आपके चरणों को प्रणाम करता हूँ।

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै धृतं स्वकीय मानुषेषु नारदादि षटपदै:। रविन्दु रन्ति देव देव राजकर्म शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

सनत्कुमार, नाचिकेतु, कश्यप, अत्रि इत्यादि सभी भंवरे की तरह आपके निकट ही रहते हैं। आपको मनुष्य योनि के लोग ग्रहण करते हैं और नारद मुनि भी आपके समीप ही निवास करते हैं। आपकी वंदना तो सूर्य, चन्द्रमा, देवता तथा स्वयं देव इंद्र भी करते हैं। मैं भी आपके चरणों का ध्यान कर आपकी वंदना करता हूँ।

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं। विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

आप सभी तरह के पापों का नाश कर देती हैं और हम सभी को लंबी आयु प्रदान करती हैं। आपके किनारे जो भी जीव-जंतु आपकी भक्ति में लीन रहते हैं, आप उन्हें मुक्ति प्रदान करती हैं। भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर भी अपने-अपने धाम में आपकी पूजा करते हैं। मैं भी आपके चरणों का ध्यान कर आपकी वंदना करता हूँ।

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे। दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे॥

आप शिवजी भगवान की जटाओं से निकली हुई अमृत के समान हैं जिसकी तरंगों की मधुर ध्वनि हम सभी सुनते हैं। आप सभी तरह के लोगों के पापों को हर लेती हैं और उन्हें सुख प्रदान करती हैं। मैं आपके सामने हाथ जोड़कर और आपके चरणों का ध्यान कर आपकी वंदना करता हूँ।

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा। सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम॥

नर्मदा अष्टक का पाठ जो भी भक्त सच्चे मन से करते हैं, उन्हें सभी तरह की कलाएं प्राप्त होती है। जो भी जातक इसका सुबह, दोपहर व शाम तीनों पहर पाठ करता हैं, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसके पाठ से हमें दुर्लभ माने जाने वाले शिव शंकर के धाम में स्थान मिलता है।

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