जमदग्नि ऋषि कौन थे ? (Who was Jamdagni Rishi)
सनातन धर्म में सप्त ऋषियों का नाम जपने का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इन ऋषियों का नाम जपने से पापों से मुक्ति मिलती है। महर्षि जमदग्नि भी 'सप्तऋषियों' में से एक थे। जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र के रुप में हुआ था। ऋषि जमदग्नि तपस्वी और तेजस्वी ऋषि थे। इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। भृगुवंशीय जमदग्नि ने अपनी तप्सया एवं साधना द्वारा उच्च स्थान को प्राप्त किया था। उनके समक्ष सभी आदर भाव रखते थे। ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम हुए।
जमदग्नि ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Jamdagni Rishi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय जब पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ गया था, धर्म कर्म के कार्यों में क्षत्रिय राजा व्यवधान उत्पन्न करने लगते थे। तब इन राजाओं द्वारा त्रस्त होकर जनता भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि के पास मदद मांगने गए। जिसके बाद महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु मे वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया। पूरी दुनिया में वह अपने क्रोध और आक्रामकता के लिए जाने जाते है। उनका उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। अपने सम्पूर्ण जीवन काल में उन्होंने 21 बार क्षत्रियों का नाश किया था। इस 21 बार क्षत्रियों के नाश के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसकी वजह से सम्पूर्ण पृथ्वी को क्षत्रियविहीन कर दिया था।
हैहयवंश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन बहुत ही अत्याचारी राजा था। एक बार वह महर्षि जमदग्नि के आश्रम में जाता है। जहां पर उसने कामधेनु गाय देखी। कामधेनु के गोरस के भंडार से जमदग्नि वैभवशाली तरीके से सबका सत्कार किया करते थे। कामधेनु की विशेषता को देखकर उसे अपने साथ ले जाने का प्रयास करता है, लेकिन महर्षि जमदग्नि कार्त्तवीर्य अर्जुन को कामधेनु गौ देने से मना कर देते हैं। इस पर वह राजा महर्षि जमदग्नि का वध कर देता है तथा कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाता है।
इसके बाद परशुराम अपने पिता की हत्या का बदला राजा कार्तवीर्य मृत्यु दंड देकर लेते हैं और कामधेनु गाय को वापस आश्रम में ले आते हैं। साथ ही अपने पिता का अन्त्येष्टि संस्कार करने के बाद प्रण लेते हें कि पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर देंगे। इसके बाद भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर घूम-घूमकर 21 बार क्षत्रियों का संहार किया।
जमदग्नि ऋषि के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Jamadagni Rishi)
भृगुपुत्र महर्षि जमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के 16 मंत्रों की रचना की है। इन रचनाओं में महर्षि जमदग्नि ने गोवंश के पालन-पोषण, रक्षा और गोवंश के पालन के बारे में विस्तार से बताया है। इसके अलावा केदारखंड के अनुसार, महर्षि जमदग्नि आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे। भगवान परशुराम द्वारा जब अपनी माता की गर्दन काट दी गई थी तब महर्षि जमदग्नि ने मंत्रों, आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के माध्यम से उनकी गर्दन वापस जोड़ दी और फिर से जीवित कर दिया।
जमदग्नि ऋषि से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Jamadagni Rishi)
ऋषि जमदग्नि जी की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थी वह अपने पति के प्रती पूर्ण निष्ठावान थीं किंतु एक गलती के परिणाम स्वरुप दोनों के संबंधों में अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो गई जिस कारण महर्षि ने उन्हें मृत्यु का दण्ड दिया। प्राचीन कथा अनुसार एक बार रेणुका जल लेने के लिए नदी पर जाती हैं, जहां पर गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहे होते हैं। चित्ररथ को देख रेणुका उन पर मोहित हो जाती हैं, जिस वजह से जल लाने में उन्हें विलंब हो जाता है और यज्ञ का समय समाप्त हो जाता है। तब ऋषि जमदग्नि ने अपनी योग शक्ति द्वारा पत्नी के मर्यादा विरोधी आचरण को देखकर अपने पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी ।
परंतु तीनों पुत्र मना कर देते हैं और केवल परशुराम ऎसा करने को तैयार होते हैं और पिता की आज्ञा स्वरूप परशुराम माँ का वध कर देते हैं। अपने बेटे परशुराम की पिता भक्ति देख कर जमदग्नि ऋषि उनसे बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने को कहा। तब परशुराम ने पिता से अपनी माता को क्षमा कर उन्हें जीवित करने का वर मांगा और सभी भाईयों को भी क्षमा करने का वरदान मांगा। इस प्रकार उनके वरदान स्वरूप उनकी माता एवं भाई दोबारा जीवन प्राप्त होता है।