दुर्वासा ऋषि कौन थे (Who was Durvasa Rishi ?)
सनातन धर्म में महर्षि दुर्वासा को महान और ज्ञानी ऋषि माना जाता है। ऋषि दुर्वासा को भगवान भोलेनाथ का अंश माना जाता है। मान्यता है कि ऋषि दुर्वासा त्रेतायुग, द्वापरयुग और सतयुग में भी जीवित थे। दुर्वासा ऋषि रामायण और महाभारत काल का भी हिस्सा रहे हैं। ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के कारण जाने जाते थे। ऋषि दुर्वासा की उत्पत्ति क्रोध के कारण हुई थी। पौराणिक ग्रंथों में ऋषि दुर्वासा के जन्म की कथा का वर्णन है। ऋषि दुर्वासा अत्यंत बुद्धिजीवी थे और उन्होंने कई ऋचाओं की रचना की थी।
दुर्वासा ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Durvasa Rishi)
ऋषि अत्रि ने पुत्रोत्पत्ति के लिए ऋक्ष पर्वत पर पत्नी अनुसूया के साथ घोर तप किया था। अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव को बेहद भयंकर क्रोध आ गया था। उनके क्रोध को देखकर सभी देवता भय से छिप गए। तब माता पार्वती ने शिव को शांत किया। भगवान शिव ने अपने गुस्से को ऋषि अत्री की पत्नी अनसुइया के अंदर संचित कर दिया। इसके बाद अनसुइया ने बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम दुर्वासा रखा गया। दुर्वासा का स्वभाव बचपन से ही बेहद तेज़ व गुस्से वाला था। भगवान शिव के क्रोध अवतार होने के कारण ऋषि दुर्वासा को अत्यधिक गुस्सा आता था।
ऋषि दुर्वासा ने अपने तप से सभी सिद्धियों पर जीत हासिल कर ली थी। ऋषि दुर्वासा ने यमुना नदी के किनारे अपने आश्रम का निर्माण किया और अपना पूरा जीवन आश्रम में बिताया। ऋषि दुर्वासा का विवाह ऋषि अंबरीष की कन्या से हुआ था। ऋषि अंबरीष दुर्वासा की क्रोधाग्नि को जानते थे, पुत्री के साथ कोई अनिष्ट न हो इसके लिए उन्होंने ऋषि दुर्वासा से बेटी से कोई भूल होने पर क्षमादान करने की प्रार्थना की। तब दुर्वासा ऋषि ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी बेटी के 100 अपराध क्षमा करेंगे।
ऋषि दुर्वासा की पत्नी का नाम था कंदली, जो कि स्वभाव से कर्मठ और बहुत समझदार थीं। वह हर एक बात का ख्याल रखती थीं। एक दिन ऋषि दुर्वासा ने रात में भोजन के बाद पत्नी से कहा कि मुझे कल ब्रह्म मुहूर्त में जरूर उठा दें। अगली सुबह ऋषि की पत्नी कंदली ब्रह्म मुहूर्त में ऋषि दुर्वासा को नहीं उठा पाईं। सुबह सूर्योदय के बाद जब ऋषि की आंख खुली तो दिन चढ़ आया था, वह कंदली पर बहुत क्रोधित हुए और उन्हें भस्म हो जाने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप का तुरंत असर हुआ और कंदली राख में बदल गईं।
दुर्वासा ऋषि का महत्वपूर्ण योगदान (Important contribution of Durvasa Rishi)
जब कंदली के पिता ऋषि अंबरीश आए तो अपनी पुत्री को राख बना देखकर बहुत दुखी हुए। तब दुर्वासा ऋषि ने कंदली की राख को केले के पेड़ में बदल दिया और वरदान दिया कि अब से यह हर पूजा व अनुष्ठान का हिस्सा बनेंगी। इस तरह से केले के पेड़ का जन्म हुआ और कदलीफल यानी केले का फल हर पूजा का प्रसाद बन गया।
दुर्वासा ऋषि से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Durvasa Rishi)
लक्ष्मण की मृत्यु
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक दिन काल तपस्वी का रूप धारण कर श्री राम से मिलने अयोध्या आए। काल ने प्रभु श्रीराम से अपनी मुलाकात को गुप्त रखने के साथ यह शर्त रखी कि यदि कोई हमें बात करते हुए देख लेगा तो आपको उसका वध करना पड़ेगा। श्रीराम ने काल को वचन दे दिया और कमरे में कोई अंदर न आ सके इसके लिए लक्ष्मण को द्वार पर खड़ा कर दिया। तभी वहां दुर्वासा ऋषि श्री राम से मिलने आ गए और कमरे में जाने लगे, लेकिन उन्हें लक्ष्मण ने रोक दिया, जिससे वे क्रोधित हो गए और बोले कि अगर इसी समय तुमने श्रीराम को मेरे आने के खबर नहीं दी तो मैं पूरे अयोध्या की जनता को श्राप दे दूंगा।
लक्ष्मण ने सोचा सम्पूर्ण प्रजा का नाश होने से अच्छा है कि मैं ही अपना प्राण त्याग दूँ, तब लक्ष्मण ने श्रीराम को जाकर पूरी बात बता दी। जब श्रीराम ने ये बात महर्षि वशिष्ठ को बताई तो उन्होंने कहा कि- आप लक्ष्मण का त्याग कर दीजिए। साधु पुरुष का त्याग व वध एक ही समान है। श्रीराम ने ऐसा ही किया। श्रीराम द्वारा त्यागे जाने से दुखी होकर लक्ष्मण सीधे सरयू नदी के तट पर पहुंचे और योग क्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।
इंद्र को श्राप और समुद्र मंथन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को पारिजात फूलों की माला भेंट की लेकिन इंद्र ने अभिमान में उस माला को अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया। ऐरावत ने उस माला को अपनी सूंड में लपेटकर नीचे फेंक दिया। अपने उपहार की ये दुर्दशा देखकर ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने इंद्र सहित पूरे स्वर्ग को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि तुम सभी दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करो। इससे स्वर्ग में फिर से धन-संपत्ति के पूर्ण हो जाएगा। साथ ही अन्य अमृत भी मिलेगा। देवताओं ने ऐसा ही किया।
कुंती को मंत्र
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, महाभारत में दुर्वासा ऋषि के मंत्र से ही कुंती ने सूर्यपुत्र कर्ण को जन्म दिया था। कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने कुंती की अति सेवा से प्रसन्न होकर ऐसा मंत्र दिया। जिसके प्रयोग से कुंती जिस देवता का स्मरण करेगी। उसका देवता का अंश पुत्र के तौर पर जन्म लेगा। छोटी उम्र के कारण कुंती को इस मंत्र की वास्तविकता का अंदाजा नहीं था। एक दिन यूं ही उनके मन में आया कि क्यों न ऋषि दुर्वासा के दिए मंत्र की परख की जाए। तब एकांत में बैठकर उन्होंने मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को याद किया। उसी समय सूर्यदेव प्रकट हो गए और कुंती को अत्यंत पराक्रमी, दानशील पुत्र दिया।