अत्रि ऋषि कौन थे ? (Who was Atri Rishi?)
अत्रि ऋषि सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे। पुराणों के अनुसार अत्रि ऋषि ब्रह्मा जी के नेत्रों से उत्पन्न हुए थे। अत्रि ऋषि, सोम (चन्द्र) के पिता थे, जो इनके नेत्र से अवतरित हुए थे। ऋषि अत्रि ने कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था जो एक महान पतिव्रता के रूप में विख्यात हुईं। ऋषि अत्रि ने पुत्रोत्पत्ति के लिए ऋक्ष पर्वत पर पत्नी अनुसूया के साथ घोर तप किया था, अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप भगवान विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी के अंश से चन्द्र देव और भगवान शिव के अंश से दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्म हुआ। अत्रि त्याग, तपस्या और संतोष के गुणों से युक्त एक महान ऋषि हुए।
अत्रि ऋषि का जीवन परिचय(Biography of Atri Rishi)
अत्रि दो वर्णों से बना है 'अ+त्रि अर्थात् वे तीनों गुणों (सत्व, रजस, तमस) से अतीत है- गुणातीत हैं। इस प्रकार महर्षि अत्रि-दम्पति एवं विध अपने नामानुरूप जीवन यापन करते हुए सदाचार परायण होकर चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। अत्रि पत्नी अनुसूया के तपोबल से ही भागीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई। सृष्टि के प्रारम्भ में जब इन दम्पति को ब्रह्मा जी ने सृष्टि वर्धन की आज्ञा दी तो इन्होंने उस ओर उन्मुख न होकर तपस्या का ही आश्रय लिया।
अत्रि ऋषि से जुड़ी पौराणिक कथा (Story of Atri Rishi)
ऋषि अत्रि और माता अनुसुइया का दाम्पत्य जीवन बहुत सहज भाव के साथ व्यतीत हो रहा था। देवी अनुसूइया जी की पतिव्रता के आगे मनुष्य और देव सभी नतमस्तक हुआ करते थे। एक बार नारद मुनि के जरिए देवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती को ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के दिव्य पतिव्रत के बारे में ज्ञात होता है तो वह उनकी परीक्षा लेने का विचार करती हैं और तीनों देवियां अपने पतियों को माता अनुसूया के पतिव्रत की परीक्षा लेने को कहती हैं।
तीनों देवियां की जिद्द के आगे विवश होकर त्रिदेव अपने रूप बदलकर एक साधु रूप में ऋषि अत्रि के आश्रम जाते हैं और अनुसूइया से भिक्षा की मांग करते हैं। साथ में एक शर्त भी रखते हैं कि भिक्षा निर्वस्त्र होकर देनी पड़ेगी। देवी अनुसूइया जी ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को पहचान लिया और अपने हाथ में जल लेकर संकल्प द्वारा तीनों देवों को शिशु रूप में परिवर्तित कर देती हैं और तब उन्हें भिक्षा देती हैं और माता की तरह स्तनपान भी कराती हैं।
इस प्रकार तीनों देवता ऋषि अत्रि के आश्रम में बालक रूप में रहने लगते हैं और देवी अनुसूया माता की तरह उनकी देखभाल करती हैं कुछ समय बाद जब त्रिदेवियाँ को इस बात की जानकारी होती है तो वह अपने पतियों को पुन: प्राप्त करने हेतु ऋषि अत्रि के आश्रम में आती हैं और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करती हैं। देवियों की याचना स्वीकार करते हुए और ऋषि अत्रि के कहने पर माता अनुसुइया त्रिदेवों को मुक्त कर देती हैं। अपने स्वरूप में आने पर तीनों देव ऋषि अत्रि व माता अनुसूइया को वरदान देते हैं कि वह उनके घर पुत्र रूप में जन्म लेंगे और त्रिदेवों के अंश रूप में दत्तात्रेय, दुर्वासा और सोम रूप में उत्पन्न हुए।
अत्रि ऋषि के महत्वपूर्ण योगदान (Important contributions of Atri Rishi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि अत्रि ने ग्रहों के बारे में शोध करके असीम ज्ञान अर्जित किया था। महर्षि अत्रि को तारामण्डल और ग्रहण के बारे में भी बहुत अधिक जानकारी थी। ऋग्वेद के अनुसार, महर्षि अत्रि ने ग्रहण पर शोध करके ग्रहण से जुड़े कई रहस्य के बारे में बताया था। उन्होंने खगोल शास्त्र के कई रहस्यों से पर्दा भी उठाया था।
अत्रि ऋषि से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Atri Rishi)
पुराणों के अनुसार ऋषि अत्रि को अश्विनीकुमारों की कृपा प्राप्त थी। एक बार जब महर्षि अत्रि समाधिस्थ थे, तब दैत्यों ने उन्हें उठाकर शत द्वार यंत्र में डाल दिया और जलाने का प्रयत्न कर रहे थे, परंतु समाधि में होने के कारण उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता था, तभी उचित समय पर अश्विनी कुमार वहाँ पहुँचकर ऋषि अत्रि को उन दैत्यों के चंगुल से बचाते हैं यही कथा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में भी बताई गई है। ऋग्वेद के दशम मण्डल में अत्रि ऋषि के तपस्या और अनुष्ठान के बारे में भी चर्चा है। साथ में ये भी बताया गया है कि अश्विनीकुमारों ने अत्रि ऋषि को यौवन प्रदान किया था।
ऋग्वेद के पंचम मण्डल में वसूयु, सप्तवध्रि को ऋषि अत्रि का पुत्र बताया गया है। ऋग्वेद के पंचम ‘आत्रेय मण्डल′, ‘कल्याण सूक्त’ ऋग्वेदीय ‘स्वस्ति-सूक्त’ की रचना महर्षि अत्रि द्वारा रचित है। यह सूक्त मांगलिक कार्यों, शुभ संस्कारों और पूजा, अनुष्ठानों में पठित होते हैं। इन्होंने अलर्क, प्रह्लाद आदि को शिक्षा भी दी थी। महर्षि की गई है।