तृतीया श्राद्ध क्या होता है? | Tritiya Shradh Kya Hai
आश्विन मास की तृतीया तिथि को किए जाने वाले श्राद्ध को तृतीया श्राद्ध कहते हैं। ये श्राद्ध बोधगया के धर्मारण्य, मातंगवापी व सरस्वती वेदी पर करना उपयुक्त माना गया है। मान्यता है कि बोधगया में तृतीया श्राद्ध करने के बाद मतंगेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करना चाहिए। हालांकि यदि आपका यहां जाना संभव नहीं है तो आप अपने घर पर भी विधि-विधान से तृतीया श्राद्ध कर सकते हैं, और मन में ही मतंगेश्वर महादेव का स्मरण कर सकते हैं।
तृतीया श्राद्ध कब है? | Tritiya Shradh Date & Time
- तृतीया श्राद्ध 20 सितंबर, शुक्रवार को किया जाएगा।
- तृतीया तिथि 19 सितंबर की रात्रि 12 बजकर 39 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- तृतीया तिथि का समापन रात्रि 09 बजकर 15 मिनट पर होगा।
- कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 27 से दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से दोपहर 01 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
- अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 04 मिनट से दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
तृतीया श्राद्ध कैसे करें? | Tritiya Shradh Kaise Kare
- श्राद्ध करने वाले जातक सबसे पहले नित्यकर्म करके स्नान करें, और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद किसी विद्वान पंडित के मार्गदर्शन में तर्पण पिंडदान आदि कर्म करें।
- श्राद्ध कर्म करने के लिए दोपहर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
- श्राद्ध कर्म गंगा तट पर कारण विशेष फलदायक माना जाता है, हालांकि यदि वहां जाना संभव न हो तो आप घर पर भी यह अनुष्ठान कर सकते हैं।
- पितरों को गंगाजल, जौ, तुलसी व शहद मिश्रित जल देने के बाद उनके नाम से दीपक जलाएं।
- इसके बाद पिता से लेकर (यदि पिता स्वर्गवासी हों) जितने पितरों के नाम याद हैं, उन सभी का स्मरण करें, और उन्हें अन्य जल अर्पित करें।
- तृतीया श्राद्ध पर गाय, कौवा, चींटी आदि के लिए भोजन का एक अंश निकालने के बाद तीन ब्राह्मणों को भी भोजन कराएं।
- इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करें, और मन में ही उनसे भोजन ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करें।
- श्राद्ध कर्म संपन्न करने के बाद ब्राह्मण को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें। यदि इस दिन आप किसी गरीब की भी सहायता कर सकें, तो इससे आपके पितरों को विशेष प्रसन्नता होगी।
तृतीया श्राद्ध का महत्व | Tritiya Shradh Ka Mahatav
जिन पूर्वजों की मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई है, तृतीया श्राद्ध उनके लिए विशेष महत्वपूर्ण है। तृतीया श्राद्ध अभिजित, कुतुप या रौहिण मुहूर्त में करना उपयुक्त माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि श्राद्ध करने वाले परिवार में भी सुख-समृद्धि, उत्तम संतान की प्राप्ति, पारिवारिक सामंजस्य और नौकरी-व्यापार में तरक्की बनी रहती है।