द्वादशी श्राद्ध क्या है? | Dwadashi Shradh Kya Hai
हिंदू धर्म में श्राद्ध एक बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
पितृपक्ष के 15 दिन पूर्वज पृथ्वी पर आकर अपने वंशजों से श्राद्ध की आशा रखते हैं, ऐसे में उनकी मृत्यु तिथि के आधार पर उनके निमित्त श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण आदि किए जाते हैं। द्वादशी श्राद्ध भी पितृपक्ष की तिथियां में से एक है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई थी। इसके अलावा इस दिन उन पितरों का श्राद्ध करने का भी विधान है, जिन्होंने मृत्यु से पहले सन्यास ले लिया था। यही कारण है कि इस तिथि को ‘सन्यासी श्राद्ध’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितृ अपने वंशजों की हर संकट से रक्षा करते हैं।
द्वादशी श्राद्ध कब है? | Dwadashi Shradh Date & Muhurt
- द्वादशी श्राद्ध 29 सितंबर, रविवार को किया जाएगा।
- द्वादशी तिथि 28 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- द्वादशी तिथि का समापन 29 सितंबर को शाम 04 बजकर 47 मिनट पर होगा।
- कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 24 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से 1:00 बजे तक रहेगा।
- अपराह्न काल मुहूर्त दोपहर 1:00 बजे से 03 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
द्वादशी श्राद्ध कैसे करें? | Dwadashi Shradh Kaise Kare
- शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध कर्म किसी विद्वान पंडित के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
- द्वादशी श्राद्ध करने के लिए सुबह स्नान करने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें।
- तर्पण व पिंडदान करने के बाद पंचबली क्रिया भी करें, यानी गाय, कौवा, चींटी, कुत्ता और देवों को भोजन का अंश अर्पित करें।
- मान्यता है कि यदि पंचबली देते समय आप अपने पितरों का स्मरण करते हैं, तो इन जीवों के रूप में वे आकर भोजन ग्रहण करते हैं।
- इस दिन सात ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देकर आदरपूर्वक विदा करें।
- द्वादशी तिथि पर सन्यासी पूर्वजों का भी श्राद्ध करने का विधान है, इसलिए इस दिन यदि संभव हो सके तो संन्यासियों को भी भोजन कराएं।
- श्राद्ध के दौरान भोजन में तामसिक चीजों का प्रयोग ना करें, और सात्विक रहें।
- श्राद्ध के दिन अपनी क्षमता के अनुसार अन्न-धन देकर किसी निर्धन व्यक्ति की सहायता करें। इससे पितृ विशेष प्रसन्न होते हैं।
- श्राद्ध पक्ष में अपने द्वार पर आए किसी व्यक्ति या जीव को भूखा न जाने दें। उन्हें भोजन देकर तृप्त करें, क्योंकि मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ किसी भी रूप में अपने वंशजों से मिलने आ सकते हैं।
द्वादशी श्राद्ध का महत्व | Dwadashi Shradh Ka Mahatav
पुराणों में मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने से कई यज्ञ और तपस्या से अधिक पुण्य प्राप्त होता है। जिन पितरों की मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई है, उनके लिए द्वादशी श्राद्ध विशेष महत्वपूर्ण है। वहीं, जो पूर्वज मृत्यु से पहले संन्यास ले चुके थे, उनके श्राद्ध के लिए भी द्वादशी का दिन निश्चित किया गया है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वादशी श्राद्ध करने से धन-धान्य, आरोग्य, विजय, दीर्घायु व संतान सुख की प्राप्ति होती है। श्राद्ध कर्म से तृप्त होकर जब पितृ पृथ्वी लोक से वापस जाते हैं, तो अपने वंशजों को सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। वहीं, जिस घर में पितरों का श्राद्ध नहीं होता है, उन पितरों को भूखे-प्यासे ही वापस लौटना पड़ता है। ऐसे में वे क्रोधित होकर अपने वंशजों को श्राप दे देते हैं, जिसका परिणाम आने वाली कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों का विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करना विशेष महत्वपूर्ण माना गया है।