जय जय सुरनायक जन भजन | Jai Jai Surnayak Jan Bhajan
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता, ये भजन भगवान के दिव्य स्वरूप, करुणा, और अनंत शक्ति को बताता है। इसमें देवताओं के नायक, जन-जन के दुखों को हरने वाले, और अपने शरणागतों की रक्षा करने वाले परम पिता के रूप में इश्वर का वंदन किया गया है।
ये भजन भगवान के उस स्वरूप को नमन करता है जो सृष्टि का संचालन करता है और हर प्राणी को सुख, शांति और मोक्ष का मार्ग दिखाता है। भगवान के प्रति यह स्तुति न केवल आपके मन को शुद्ध करती है, बल्कि आपके दिव्य प्रेम और अनुकंपा का स्मरण कराकर जीवन को आनंदमय बनाती है।
जय जय सुरनायक जन लिरिक्स | Jai Jai Surnayak Jan Lyrics
छंद:
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता ।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता ॥
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ॥
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा ।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा ॥
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा ।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा ॥
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा ।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा ॥
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा ।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा ॥
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना ।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना ॥
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा ।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा ॥
दोहा:
जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह ।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥
- तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-186