हिंदू धर्म में कई देवी देवताओं की पूजा होती हैं। उन्हीें में से एक हैं भगवान दत्तात्रेय। इन्हें भगवान विष्णु जी का अवतार माना जाता है। हालांकि, भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा-विष्णु-महेश का अवतार भी कहा जाता है। भगवान शिव का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में देखने को मिलता है। ये महर्षि अत्रि व माता अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं। जबकि माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है।
दत्तात्रेय अवतार का महत्व (Importance of Dattatreya Avatar)
जगत की रचना, पालन पोषण व संहार के लिए देवताओं का एक रूप काफी प्रसिद्ध है, जिसे श्री दत्तावतार कहते हैं। श्री दत्त का अवतार ब्रह्मकुल में ऋषि अत्रि के आश्रम में हुआ था। माता अनुसया के पतिव्रत्य के कारण दत्तात्रेय अवतार का विशेष महत्व है। प्रभु श्रीराम, श्री कृष्ण, बुद्ध अवतार गृहस्थाश्रमी थे, लेकिन श्री दत्तात्रेय भगवान अवधूत अवस्था में सर्वत्र संचार करने वाले वैराग्य का अनोखा उदाहरण हैं। भगवान दत्तात्रेय की उपासना सभी धर्म व जाति के लोग जैसे किरात, मातंग, म्लेच्छ, शबरसुत आदि श्रद्धा भाव से करते हैं। श्री दत्तावतारी परंपरा में मुसलमान भक्तों की भी कमी नहीं है। भगवान दत्तात्रेय ने यज्ञ जीवन को जागृत किया, चतुर्वर्णों की उदासीनता को दूर किया व अधर्म तथा असत्य का नाश कर लोगों में शक्ति का संचार किया। त्रिमुखी व एक मुखी श्री दत्तात्रेय भगवान की पूजा-उपासना के साथ उनके चरण-पादुकाओं की भी पूजा का बहुत महत्व है। गुरुवार का दिन श्री दत्त का वार माना जाता है। मार्गशीर्ष के पूर्णिमा श्री दत्तात्रेय की जयंती के रूप में मनाई जाती है।
भगवान विष्णु ने दत्तात्रेय अवतार क्यों लिया था ? (Why did Lord Vishnu take Dattatreya avatar?)
श्री दत्तात्रेय महान यशस्वी महर्षि थे। एक समय जब सभी वेद नष्ट से हो गए। वैदिक कर्मों व यज्ञ यागादिकों का लोप हो गया। चारों वर्ण एक में मिल गए और सर्वत्र वर्णसंकरता फैल गई। धर्म शिथिल हो गया, अधर्म बढ़ने लगा, सत्य दब गया, प्रजा क्षीण होने लगी। ऐसे समय में महात्मा दत्तात्रेय ने यज्ञ व कर्मानुष्ठान की विधि सहित सम्पूर्ण वेदों का पुनर्रुद्धार किया। साथ ही दोबारा से चारों वर्णों को पृथक-पृथक अपनी मर्यादा में स्थापित किया।
दत्तात्रेय की पूजा विधि (Dattatreya worship method)
दत्तात्रेय जयंती पर इनकी पूजा करने व उपवास रखने से शीघ्र फल मिलता है। भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान दत्तात्रेय की पूजा अर्चना की विधि बहुत आसान है।
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ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
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नए व शुद्ध जगह पर सफेद रंग के आसन पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
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भगवान का गंगाजल से अभिषेक करें व सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें।
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धूप-दीप जलाकर पूजा करें व मिष्ठान का भोग लगाएं।
दत्तात्रेय अवतार की कहानी (Story of Dattatreya Avatar)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता अनुसूया त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़ा तप कर रहीं थीं। यह देख तीनों देवों की अर्धांगिनि माता सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती जी को जलन होने लगी। उन्होंने अपने पतियों से भूलोक जाकर माता अनुसूया की पतिव्रता की परीक्षा लेने की बात कही। देवताओं ने बहुत समझाया लेकिन देवियों के हठ के सामने उनकी एक न चली। जिसके बाद ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों साधुवेश में अनुसूया की परीक्षा लेने पृथ्वी लोक आ गए।
साधुवेश में त्रिदेव महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे। उस समय महर्षि आश्रम में नहीं थे। साधुओं को देख माता ने उन्हें प्रणाम कर उनका स्वागत किया। त्रिदेवों ने माता से भिक्षा मांगी, लेकिन उनकी एक ही शर्त थी कि माता अपनी गोद में बैठाकर उन्हें भोजन करायें। यह सुन अनुसूया सोच में पड़ गईं। इसके बाद माता ने तीनों साधुओं पर मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल छिड़का, जिसके तीनों साधू शिशु रूप में बदल गए। जिसके बाद माता ने तीनों शिशुओं को अपनी गोद में बैठाकर उन्हें स्तनपान कराया। इधर पतियों के काफी देर तक वापस न लौटने पर तीनों देवियां व्याकुल हो उठीं। पतियों की खोज में यह तीनों भी पृथ्वी लोक पहुंच गईं। यहां अपने पतियों को शिशु रूप में देख देवियों ने माता अनुसूया से आग्रह किया कि वह उनके पतियों को वापस सौंप दें। माता अनुसूया ने देवियों की बात मान ली, लेकिन उन्होंने कहा कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा। माता अनुसूया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित किया। दत्तात्रेय का शरीर तो एक था, लेकिन उनके 3 सिर व 6 भुजाएं थीं।
दत्तात्रेय के मंत्र और अर्थ (Dattatreya mantras and meaning)
- मंत्र : हरि ओम तत् सत जय गुरु दत्ता
अर्थ : पूरे ब्रह्मांड के शासक व सच्चे सार भगवान दत्तात्रेय हैं।
- मंत्र : श्री गुरुदेव दत्ता
अर्थ : हिंदू धर्म में दत्तात्रेय की आकृति समृद्धि व भाग्य का प्रतिनिधित्व करती है। गुरुदेव पूरे ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में भगवान की पहचान करते हैं। दत्तत्रेय में शिव, ब्रह्मा व विष्णु सभी का रुप है।
- मंत्र : दिगंबर दिगंबर श्रीपद वल्लभ दिगंबर
अर्थ : भगवान के पैर सुंदर हैं और वह स्वयं को ब्रह्मांड की पोशाक से सुशोभित करते हैं। वह जब भी भटकता है, अत्यधिक सौंदर्य व प्रकाश के साथ ब्रह्मांड में आनंद और तृप्ति लाता है।
दत्तात्रेय की पूजा के क्या लाभ हैं ? (benefits of Dattatreya worship)
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भगवान दत्तात्रेय अगर प्रसन्न हो जाते हैं तो भक्तों को बुद्धि, ज्ञान, बल तथा ऐश्वर्य की प्राप्त होती है।
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श्री दत्तात्रेय का आशीर्वाद मिल जाए तो सभी शत्रु स्वतः ही परास्त हो जाते हैं।
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नियमित रूप से भगवान की साधना करने से व्यक्ति को बहुत जल्द सिद्धि प्राप्त होती है।
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भगवान दत्तात्रेय की आराधना से सभी तरह की तांत्रिक सिद्धियों को बहुत ही आसानी से पाया जा सकता है।